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दशमोऽध्यायः
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से ही श्रावण में वर्षा का अनुमान लगाया जा सकता है । जितना कम जल घड़े में रहेगा, उतनी ही कम वर्षा होगी। इसी प्रकार पूर्व दिशा के घड़े से भाद्रपद मास की वर्षा, दक्षिण दिशा के घड़े से आश्विन मास की वर्षा, और पश्चिम के घड़े के जल से कार्तिक की वर्षा का अनुमान करना चाहिए। यह एक अनुभूत और सत्य वर्षा परिज्ञान का नियम है।
चित्र
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उत्तर- श्रावण
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पश्चिम -कार्तिक | वेदी या चतुष्कोण घर का भाग
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पूर्व - भाद्रपद
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दक्षिण- आश्विन
वर्षा का विचार रोहिणी चक्र के अनुसार भी किया जाता है । 'वर्षप्रबोध'
में विजय गणि ने इस चक्र का उल्लेख निम्न प्रकार किया है :
राशिचक्रं लिखित्वादौ मेषसंक्रान्ति भादिकम् । अष्टाविंशतिकं त लिखेन्नक्षत्रसंकुले ॥ सन्धौ द्वयं जलं दद्यादन्यत्रैकैकमेव च । चत्वारः सागरास्तत्र सन्धयश्चाष्टसंख्यया ॥ श्रृंगाणि तत्र चत्वारि तटान्यष्टौ स्मृतानि च । रोहिणी पतिता यत्र ज्ञेयं तत्र शुभाशुभम् ॥ जाता जलप्रदस्यैषा चन्द्रस्य परमप्रिया । समुद्र ेति महावृष्टिस्तटे वृष्टिश्च शोभना । पर्वते बिन्दुमात्रा च खण्डवृष्टिश्च सन्धिषु । सन्धौ वणिग् गृहे वासः पर्वते कुम्भकृद्गृहे ॥ मालाकारगृहे सिन्धो रजकस्य गृहे तटे ।
अर्थात् सूर्य की मेष संक्रान्ति के समय जो चन्द्र नक्षत्र हो, उसको आदि कर