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चतुर्दशोऽध्यायः
249 जब घोड़े शान्त, प्रसन्न और काम से पीड़ित होकर विचरण करें और स्त्रियों के द्वारा देखे जाते हों तो विद्वानों को उनका शुभाशुभत्व नहीं लेना चाहिए ।।1 59॥
मूत्रं पुरीषं बहशो विलुप्ताङ्गा प्रकुर्वतः।
हेषन्ते दीननिद्रास्तिदा कुर्वन्ति ते जयम् ॥160॥ यदि घोड़े विलुप्तांग होकर अधिक मूत्र और लीद करें और निद्रा से पीड़ित होकर हींसें तो जय की सूचना देते हैं ।। 160॥
स्तम्भयन्तोऽथ लांगूलं हेषन्तो दुर्मनो हयाः ।
महमहुश्च जम्भन्ते तदा शस्त्रभयं वदेत् ॥161॥ पूंछ को स्तम्भित करते हुए खिन्न होकर घोड़े हींसें और बार-बार जंभाई लें तो शस्त्रभय कहना चाहिए ॥161।।
यदा विरुद्ध हेषन्ते स्वल्पं विकृतिकारणम ।
तदोपसर्गो व्याधिर्वा सद्यो भवति रात्रिज: ॥162॥ यदि घोड़े विकृत कारणों के होने पर विपरीत हींसते हों तो रात्रि में उत्पन्न होने वाली व्याधि या उपसर्ग शीघ्र ही होते हैं ।।162।।
भूम्यां ग्रसित्वा ग्रासं तु हेषन्ते प्राङ मुखा यदा।
अश्वारोधाश्च बद्धाश्च तदा क्लिश्यति क्षुद्भयम् ॥163॥ पृथ्वी में से एकाध कौर घास खाकर यदि पूर्व की ओर मुखकर घोड़े हींसें तो क्षुधा के क्लेश और भय की सूचना देते हैं ।। 163॥
शरीरं केसरं पुच्छं यदा ज्वलति वाजिनः ।
परचक्र प्रयातं च देशभंगं च निदिशेत् ॥1640 __ यदि घोड़ों के शरीर, पंछ और कसबार जलने लगें तो परशासन का आगमन और देशभंग की सूचना समझनी चाहिए ।।164।।
यदा बाला प्रक्षरन्ते पुच्छं चटपटायते ।
वाजिनः सस्फुलिंगा वा तदा विद्यान्महद्भयम् ॥165॥ यदि अकारण घोड़ों के बाल टूटकर गिरने लगें, पूंछ चट-चट करने लगे और उनके शरीर से स्फुलिंग निकलने लगें तो अत्यधिक भय समझना चाहिए। 165॥
हेषन्ते तु तदा राज्ञः पूर्वाह्न नाग-वाजिनः ।
तदा सूर्यग्रहं विन्द्यादपराले तु चन्द्रजम् ॥166॥ यदि दोपहर से पहले राजा के हाथी, घोड़े हींसने लगें तो सूर्यग्रह और दोपहर