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भद्रबाहुसंहिता
पाश के द्वारा उस मण्डल और देश का विनाश करता है || 82|| होने चारे जनपदानतिरिक्ते नृपं वधेत् । समे तु समतां विन्द्याद्विषमे विषमं वदेत् ॥83॥
हीनचार - हीन गतिवाला शुक्र जनपद का विनाश, अतिरिक्त — अधिक गतिवाला शुक्र नृप का वध, समगतिवाला शुक्र समता और विषमगति वाला शुक्र विषमता करता है । अर्थात् शुक्र अपनी गति के अनुसार शुभाशुभ फल होता 118311
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कृत्तिकां रोहिणीं चित्रां 'मैत्रमित्रं तथैव च । वर्षासु दक्षिणाद्याषु यदा चरति भार्गवः ॥ 84 व्याधिश्चेतिश्च दुर्वृष्टितदा धान्यं विनाशयेत् । महाघं जनमारिश्च जायते नात्र संशयः ॥85॥
कृत्तिका, रोहिणी, चित्रा, अनुराधा, विशाखा, इन नक्षत्रों में, दक्षिणादि दिशाओं में, वर्षाकाल में जब शुक्र गमन करता है, तब निम्न फल घटित होते हैं । उक्त प्रकार के शुक्र में व्याधि, ईति, महामारी, अनावृष्टि या अतिवृष्टि, महंगाई, जनमारी एवं धान्य का नाश निस्सन्देह होता है । तात्पर्य यह है कि उक्त नक्षत्रों में जब शुक्र शीघ्र गति से गमन करता है या अधिक मन्दगति से गमन करता है, तब उपर्युक्त अशुभ फल घटता है ।184-85।।
ऐतेषामेव मध्येन मध्यमं फलमादिशेत् ।
उत्तरेणोत्तरं विन्द्यात् सुभिक्षं क्षेममेव च ॥ 86
जब उपर्युक्त नक्षत्रों में शुक्र मध्यम गति से गमन करता है, तो मध्यम फल घटता है । उत्तर दिशा में शुक्र के गमन करने से सुभिक्ष और कल्याण होता
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मघायां च विशाखायां वर्षासु मध्यमस्थितः । तदा सम्पद्यते सस्यं समघं च सुखं शिवम् ॥87॥
वर्षाकाल में जब शुक्र मघा और विशाखा में मध्यम गति से स्थित रहता है तो धान्य की खूब उत्पत्ति होने के साथ वस्तुओं के भाव में समता, सुख और कल्याण होता है ॥87
पुनर्वसुमाषाढां च याति मध्येन भार्गवः ।
तदा सुवृष्टिञ्च विन्द्यात् व्याधिश्च समुदीर्यते ॥ 88॥
1. मैवमैन्द्र ं मु० । 2. यह पंक्ति हस्तलिखित प्रति में नहीं है ।