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चतुर्दशोऽध्यायः
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___ जो व्यक्ति स्वप्न में निर्भय होकर कटे हुए पेड़ को गिरते देखता है, उसके रत्न नष्ट हो जाते हैं अथवा बहुमूल्य पदार्थ अग्नि लगने से जल जाते हैं ।।146॥
क्षीयते वा म्रियते वा पंचमासात् परं नृपः।
गजस्यारोहणे यस्य यदा दन्त: प्रभिद्यते ॥147॥ जब हाथी पर सवारी करते समय, हाथी के दांत टूट जाएँ तो सवारी करने वाला राजा पाँच महीने के उपरान्त क्षय या मरण को प्राप्त हो जाता है ।।1471
दक्षिणे राजपीडा स्यात्सेनायास्तु वधं वदेत् । मूलभंगस्तु यातारं करिकानं नृपं वदेत् ॥148॥ 1मध्यमंसे गजाध्यक्षमग्रजे स पुरोहितम् । विडाल-नकुलोलूक-काक-कंकसमप्रभः ॥149॥ यदा भंगो भवत्येषां तदा ब्र यादसत्फलम् । शिरो नासाग्रकण्ठेन सानुस्वारं निशंसनैः ॥150॥
भक्षितं संचितं यच्च न तद् ग्राह्यन्तु वाजिनाम् । नाभ्यंगतो महोरस्क: कण्ठे वृत्तो यदेरित: ॥151॥ 'पार्वे तदा भयं ब्रूयात् प्रजानामशुभंकरम् ।
अन्योन्यं समुदीक्षन्ते हेष्यस्थानगता हया: ।।152॥ ___ यदि दाहिना दाँत टूटे तो राजपीड़ा और सेना का वध तथा मूल दाँतों का भंग होना गमन करने वाले राजाओं के लिए खरोंच और भय देने वाला है ॥148॥ __ मध्य से टूटने पर गजाध्यक्ष और पुरोहित को भय होता है।
विडाल, नकुल, उलूक, काक और बगुला दन्त का भंग हो तो असत् फल होता है ॥149
घोड़ों के सिर, नासाग्र भाग और कंठ के द्वारा सानुस्वार शब्द होने से संचित भोजन भी ग्राह्य नहीं होता।
जब छाती तानकर घोड़ा नाभि से कण्ठ तक अकड़ता हुआ शब्द करे तब वह समीपस्थ प्रजा को अशुभकारी और भयप्रद होता है ।15।
यदि घोड़ा हींसते हुए आपस में देखें तो प्रजा को भय होता है ।।152।।
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1. मध्यम रोगजाध्यक्षमग्रजे मु० । 2. साक्षार्थी मु०। 3. सुखेरितः। 4. स पावें रुदन्वानुच्चो नो गृह्यते हि सः । मु० ।