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भद्रबाहुसंहिता
यदि गन्धर्व नगर परकोटा और तोरणरहित दिखलाई पड़े तो वनवासी तस्करों— चोरों और अनूपदेश निवासियों का विनाश होता है ।।14।। विशेषतापसव्यं तु गन्धर्वनगरं यदा ।
परचक्रेण महता नगरं 'चाभिभूयते ||15||
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यदि विशेष रूप से अपसव्य - - दक्षिण की ओर गन्धर्व नगर दिखलाई पड़े तो परशासन के द्वारा नगर का घेरा डाला जाता है -परशासन का आक्रमण होता है ॥15॥
गन्धर्वनगरं क्षिप्रं जायते वाभिदक्षिणम । स्वपक्षागमनं चैव जयं वृद्धि जलं वहेत् ॥16॥
यदि शीघ्रतापूर्वक दक्षिण की ओर गन्धर्वनगर गमन करता हुआ दिखलाई पड़े तो स्वपक्ष की सिद्धि, जय, वृद्धि और बल - सामर्थ्य की प्राप्ति होती है ॥16॥
यदा गन्धर्वनगरं प्रकटं तु दवाग्निवत् । दृश्यते पुररोधाय तद्भवेन्नात्र संशयः ॥17॥
जब गन्धर्वनगर दावाग्नि – अरण्य में लगी अग्नि के समान दिखलाई पड़े तब नगर का अवरोध अवश्य होता है, इसमें सन्देह नहीं है ||17||
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3 अपसव्यं विशीर्णं तु गन्धर्वनगरं यदा । तदा विलुप्यते राष्ट्रं बलक्षोभश्च जायते ॥18॥
अपसव्य - दक्षिण की ओर जर्जरित गन्धर्वनगर दिखलाई पड़े तो राष्ट्रों में विप्लव -- उपद्रव और सेना में क्षोभ होता है ॥18॥
यदा गन्धर्वनगरं प्रविशेच्चाभिदक्षिणम् । अपूर्वां लभते राजा तदा स्फीतां वसुन्धराम् ॥19॥
जब गन्धर्वनगर दक्षिण से प्रवेश करे- दक्षिण से चारों दिशाओं की ओर घूमता हुआ दिखलाई दे तब राजा अपूर्व विशाल भूमि प्राप्त करता है ॥19॥ सध्वजं सपताकं वा सुस्निग्धं सुप्रतिष्ठितम् । शान्तां दिशं प्रपद्येत राजवृद्धि स्तथा भवेत् ॥20॥
ध्वजा और पताकाओं से युक्त स्निग्ध तथा सुव्यवस्थित शान्त दिशा
1. परिवार्यते मु० । 2. दक्षिणे जायते यदा । 3. विशीर्येत् मु० C. । 4. तदाऽऽदिशेत्