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भद्रबाहुसंहिता युद्धानि कलहा बाधा विरोधाऽरिविवृद्धयः ।
अभीक्ष्णं यत्र वर्तन्ते देशं परिवर्जयेत् ॥127॥ युद्ध, कलह, बाधा, विरोध एवं शत्रुओं की वृद्धि जिस देश में निरन्तर हो उस देश का त्याग कर देना चाहिए ।।127॥
विपरीता यदा छाया दृश्यन्ते वृक्ष-वेश्मनि ।
यदा ग्रामे पुरे वाऽपि प्रधानवधमादिशेत् ॥128॥ ग्राम और नगर में जब वृक्ष और घर की छाया विपरीत—जिस समय पूर्व में छाया रहती हो, उस समय पश्चिम में और जब पश्चिम में रहती हो तव पूर्व में हो तो प्रधान का वध होता है ।।128।।
महावृक्षो यदा शाखामुत्करां मुञ्चते द्रुतम् ।
भोजकस्य वधं विन्द्यात् सणां वधमादिशेत् ॥129॥ महावृक्ष जब अकारण ही अपनी शाखा को शीघ्र ही गिराता है तो भोजकसपेरों का वध होता है तथा सर्पो का भी वध होता है ।।129।।
पांशुवृष्टिस्तथोल्का च निर्घाताश्च सुदारुणाः ।
यदा पतन्ति युगपद् घ्नन्ति राष्ट्र सनायकम् ।।130॥ धूलि की वर्षा, उल्कापात, भयंकर कड़क-विद्य त्पात एक साथ हों तो राष्ट्रनायक का विनाश होता है ।। 1 3011
रसाश्च विरसा यत्र नायकस्य च दूषणम् ।
तुलामानस्य हसनं राष्ट्रनाशाय तद्भवेत् ॥131॥ जब अकारण ही रस-विरस ---- विकृत रस वाले हों तो नायक में दोष लगता है तथा तराजू के हंसने से राष्ट्र का नाश होता है ।131॥
शुक्लप्रतिपदि चन्द्र समं भवति मण्डलम्।
भयंकरं तदा तस्य नपस्याथ न संशयः ॥1321 यदि शुक्ल प्रतिपदा को चन्द्रमा के दोनों शृग समान दिखलाई पड़ें-समान मण्डल हो तो निस्सन्देह राजा के लिए भय करने वाला होता है ।।132॥
समाभ्यां यदि शृंगाभ्यां यदा दृश्येत चन्द्रमा:।
धान्यं भवेत् तदा न्यूनं मन्दवृष्टि विनिदिशेत् ॥133॥ यदि इसी दिन दोनों शृग समान दिखलाई पड़ें तो अन्न की उपज कम होती है और वृष्टि भी कम होती है । यहाँ विशेषता यह है कि आषाढ़ शुक्ला प्रतिपदा