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भद्रबाहुसंहिता
नक्षत्र, मुहूर्त आदि सभी का निर्देश करना चाहिए । मेघ गर्भ धारण के छः महीने के पश्चात् वर्षा करते हैं ||6||
गर्भाधानादयो मासास्ते च मासा अवधारिणः । विपाचनत्रयश्चापि त्रयः कालाभिवर्षणाः ॥ 7 ॥
गर्भाधान, वर्षा आदि के महीनों का निश्चय करना चाहिए। तीन महीनों तक गर्भ की पक्व क्रिया होती है और तीन महीने वर्षा के होते हैं ॥ 7 ॥
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शीतवातश्च विद्युच्च गर्जितं परिवेषणम् । सर्वगर्भेषु शस्यन्ते निर्ग्रन्थाः साधुर्दाशिनः ॥8॥
सभी गर्भो में शीत वायु का बहना, बिजली का चमकना, गर्जन करना और परिवेष की प्रशंसा सभी निर्ग्रन्थ साधु करते हैं । अर्थात् मेघों के गर्भ धारण के समय शीत वायु का बहना, बिजली का चमकना, गर्जन करना और परिवेष धारण करना अच्छा माना गया है । उक्त चिह्न फसल के लिए भी श्रेष्ठ होते 11811
गर्भास्तु विविधा ज्ञेयाः शुभाशुभा यदा तदा । पालिंगा निरुदका भयं दद्युर्न संशयः २ ॥9॥ उल्कापातोऽथ निर्घाताः दिग् दाहा' पांशुवृष्टयः । गृहयुद्धं निवृत्तिश्च ग्रहणं चन्द्रसूर्ययोः ॥1ou ग्रहाणां चरितं चक्रं साधूनां' कोपसम्भवम् । गर्भाणामुपघाताय न ते ग्राह्या विचक्षणः ॥11॥
मेघ-गर्भ अनेक प्रकार के होते हैं, पर इनमें दो मुख्य हैं— शुभ और अशुभ । पाप के कारणीभूत अशुभ मेघ गर्भ निस्सन्देह जल की वर्षा नहीं करते हैं तथा भय भी प्रदान करते हैं । अशुभ गर्भ से उल्कापात, दिग्दाह, धूलि की वर्षा, गृहकलह, घर से विरक्ति और चन्द्रग्रहण तथा सूर्यग्रहण होते हैं । ग्रहों का युद्ध, साधुओं का क्रोधित होना, गर्भों का विनाश होता है, अतः बुद्धिमान व्यक्तियों को अशुभ गर्भमेघों का ग्रहण नहीं करना चाहिए ॥ 9-11॥
धूमं रजः पिशाचांश्च शस्त्रमुल्कां सनागजः । तैलं घृतं सुरामस्थ क्षारं' लाक्षां वसां मघु ॥12॥ अंगारकान् नखान् केशान् मांसशोणितकर्द्दमान् विपच्यमाना मुञ्चन्ति गर्भाः पापभयावहाः ॥13॥
1. गर्जनं मु० । 2. असंशय: मु० । 3. दिशां दाहा मु० । 4. सधूमं मु० B. । 5. विपश्चितः मु० । 6. क्षोरं मु० A. ।