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त्रयोदशोऽध्यायः
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ग्राम्या वा यदि वारण्या दिवा वसन्ति निर्भयम्।
सेनायां संप्रयातायां स्वामिनोऽत्र भयं भवेत् ॥132॥ यदि प्रयाण करने वाली सेना में शहरी या ग्रामीण कौए निर्भय होकर निवास करें तो स्वामी को भय होता है ।।132॥
मैथुनेन विपर्यासं यदा कुयु विजातयः ।
रात्री दिवा च सेनायां स्वामिनो वधमादिशेत् ॥133॥ यदि प्रयाण करने वाली सेना में रात्रि या दिन में विजाति के प्राणी-गाय के साथ घोड़ा या गधा मैथुन में विपर्यास-- उल्टी क्रिया करें, पुरुष का कार्य स्त्री और स्त्री का कार्य पुरुष करे तो स्वामी का वध होता है ।।133।।
चतु:पदानां मनुजा यदा कुर्वन्ति वाशितम् ।
मृगा वा पुरुषाणां तु तत्रापि "स्वामिनो वध: 11340 यदि चतुष्पद की आवाज मनुष्य करें अथवा पुरुषों की आवाज मृग-पशु करें तो स्वामी का वध होता है ।।। 341
एकपादस्त्रिपादो वा विशृंगो यदि वाऽधिकः ।
प्रसूयते पशुर्यत्र यत्रापि सौप्तिको वध: ॥135॥ जहाँ एक पैर या तीन पैर वाला अथवा तीन सींग या इससे अधिक वाला पशु उत्पन्न हो तो स्वामी का वध होता है ।।। 351
अश्रुपूर्णमुखादीनां शेरते च यदा भृशम् ।
पदान्विलिखमानास्तु हया यस्य स वध्यते ॥136॥ जिस सेना के घोड़े अत्यन्त आँसुओं से मुख भरे होकर शयन करें अथवा अपनी टाप से जमीन को खोदें तो उसके राजा का वध होता है ।। 1 36।।
निष्कट्यन्ति पादैर्वा भमौ बालान किरन्ति च ।
प्रहृष्टाश्च प्रपश्यन्ति तत्र संग्राममादिशेत् ॥137॥ जब घोड़े पैरों से धरती को कूटते हों अथवा भूमि में अपने बालों को गिराते हों और प्रसन्न-से दिखलाई पड़ते हों तो संग्राम की सूचना समझनी चाहिए ॥137॥
न चरन्ति यदा ग्रासं न च पानं पिबन्ति वै।
श्वसन्ति वाऽपि धावन्ति विन्द्यादग्निभयं तदा ॥1381 1. सोऽस्तिको । मु०। 2 सौप्तिको मु० । 3. वासितम् मु० । 4. सोऽस्तिको मु० ।