________________
त्रयोदशोऽध्यायः
195
कम तथा सैनिकों के वाहन भी विकृत शब्द न करें तो शुभ फल होता है ।।119।।
यद्यग्रतस्तु प्रयायेत काकसैन्यं प्रयायिणाम् ।
विस्वरं निभतं वाऽपि येषां विद्यांच्चमूवधम् ॥120॥ यदि प्रयाण करने वालों के आगे काकसेना-कौओं की पंक्ति गमन करे अथवा विकृत स्वर करती हुई काकपंक्ति लौटे तो सेना का वध होता है ।।120॥
राज्ञो यदि प्रयातस्य गायन्ते ग्रामिका: परे।
चण्डानिलो नदी शुष्येत् सोऽपि बध्येत पार्थिवः ॥121॥ यदि प्रयाण करने वाले राजा के आगे ग्रामवासी नारियाँ गाना (रुदन करती) गाती हों और प्रचण्ड वायु नदी को सुखा दे तो राजा के वध की सूचना समझनी चाहिए ॥121।।
देवताऽतिथिभत्येभ्योऽदत्वा तु भुंजते यदा।
यदा भक्ष्याणि भोज्यानि तदा राजा विनश्यति ॥122॥ देवता की पूजा, अतिथि का सत्कार और भृत्यों को बिना दिये जो भोजन करता है, वह राजा विनाश को प्राप्त होता है ।।122॥
द्विपदाश्चतुःपदा वाऽपि यदाऽभीक्ष्णं श्रदन्ति वै।
परस्परं सुसम्बद्धा सा सेना बध्यते परैः ॥123॥ द्विपद-मनुष्यादि अथवा चतुष्पद—पशु आदि चौपाये परस्पर में सुसंगठित होकर आवाज करते हैं-गर्जना करते हैं, तो सेना शत्रुओं के द्वारा वध को प्राप्त होती है।123।।
ज्वलन्ति यस्य शस्त्राणि नमन्ते निष्क्रमन्ति वा।
सेनायाः शस्त्रकोशेभ्य: साऽपि सेना विनश्यति ॥124॥ यदि प्रयाण के समय सेना के अस्त्र-शस्त्र ज्वलन्त होने लगें-अपने आप झुकने लगें अथवा शस्त्रकोश से बाहर निकलने लगें तो भी सेना का विनाश होता है ।1241
नर्दन्ति द्विपदा यत्र पक्षिणो वा चतुष्पदाः।
क्रव्यादास्तु विशेषेण तत्र संग्राममादिशेत् ॥125॥ द्विपद-पक्षी अथवा चतुष्पद - चौपाये गर्जना करते हों अथवा विशेष रूप से मांसभक्षी पशु-पक्षी गर्जना करते हों तो संग्राम की सूचना समझनी
1. रसन्नि मु०।