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चतुर्दशोऽध्यायः
227 मधुरा: क्षीरवृक्षाश्च श्वेतपुष्पफलाश्च ये।
सौम्यायां दिशि यज्ञार्थं जानीयात् प्रतिपुद्गलाः ॥24॥ जो मधुर, क्षीर, श्वेत पुष्प और फलों से युक्त वृक्ष उत्तर दिशा में होते हैं, वे यज्ञ के लिए उत्पात के फल की सूचना देते हैं । अर्थात्, उत्तर दिशा में मधुर, श्वेत पुष्प और फलों से युक्त क्षीर वृक्ष ब्राह्मणों के लिए उत्पात की सूचना देते हैं ॥24॥
कषायमधुरास्तिक्ता उष्णवीर्यविलासिनः।
रक्तपुष्पफला: प्राच्यां सुदीर्घनृपक्षत्रयोः ॥25॥ कषाय, मधुर, तिक्त, उष्णवीर्य, विलासी, लाल पुष्प और फल वाले वृक्ष पूर्व दिशा में बलवान् राजा और क्षत्रियों के लिए प्रतिपुद्गल-उत्पातसूचक हैं ।।25॥
अम्ला: सलवणा: स्निग्धा: पीतपुष्पफलाश्च ये।
'दक्षिण दिशि विज्ञेया वैश्यानां प्रतिपुद्गला: ॥26॥ आम्ल, लवणयुक्त, स्निग्ध, पीत पुष्प और फल वाले वृक्ष दक्षिण दिशा में वैश्यों के लिए उत्पात सूचक हैं ॥26।।
कटकण्टकिनो रूक्षा: कृष्णपुष्पफलाश्च ये।
वारुण्यां दिशि वृक्षाः स्युः शूद्राणां प्रतिपुद्गला: ॥27॥ ___ कटु, काँटों वाले, रूक्ष, काले रंग के फूल-फल वाले वृक्ष पश्चिम दिशा में शूद्रों के लिए उत्पात सूचक हैं ॥27॥
महान्तश्चतुरस्राश्च गाढाश्चापि विशेषिणः ।
वनमध्ये स्थिता: सन्त: स्थावरा: प्रतिपुद्गला ॥28॥ महान् चौकोर, और विशेष रूप से गाढ़-मजबूत और वन के मध्य में स्थित वृक्ष स्थावरों-वहाँ के निवासियों के लिए उत्पात सूचक होते हैं ।।28॥
हस्वाश्च तरवो येऽन्ये अन्त्ये जाता वनस्य च ।
अचिरोद्भवकारा ये यायिनां प्रतिपुद्गला: ॥29॥ छोटे वृक्ष और जो अन्य वृक्ष वन के अन्त में उत्पन्न हुए हैं एवं शीघ्र ही उत्पन्न हुए पौधों जैसा जिनका आकार है अर्थात् जो छोटे-छोटे हैं, वे यायीआक्रमण करने वालों के लिए उत्पात सूचक हैं ।।29।।
1, फलाश्च ये मु० । 2. दक्षिणां मु० । 3. महान्तश्चतुरस्राश्च स्वगाहाश्च वरोषिताः ।