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चतुर्दशोऽध्यायः
229 जैसे कोई वृद्ध पुरुष किसी निमित्त के मिलते ही मरण को प्राप्त हो जाता है, उसी प्रकार पुराना वृक्ष भी किसी निमित्त को प्राप्त होते ही विनाश को प्राप्त हो जाता है ॥35॥
इतरेतरयोगास्तु वृक्षादिवर्णनामभिः ।
वृद्धाबलोग्रमूलाश्च चलच्छश्चि साधयेत् ॥36॥ वृद्ध पुरुष और पुराने वृक्ष का परस्पर में इतरेतर-अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है। अतः पुराने वृक्ष के उत्पातों से वृद्ध का फल तथा नवीन युवा वृक्षों से युवक और शिशुओं का उत्पात निमित्तक फल ज्ञात करना चाहिए तथा उल्कापात आदि के द्वारा भी निमित्तों का परिज्ञान करना चाहिए ।।36॥
हसने रोदने नृत्ये देवतानां प्रसपणे।
महद्भयं विजानीयात् षण्मासाद्विगुणात्परम् ॥37॥ देवताओं के हंसने, रोने, नृत्य करने और चलने से छह महीने से लेकर एक वर्ष तक जनपद के लिए महान भय अवगत करना चाहिए ॥37॥
चित्राश्चर्यसुलिगानि निमीलन्ति वदन्ति वा।
ज्वलन्ति च विगन्धीनि भयं राजवधोद्भवम् ॥38॥ विचित्र, आश्चर्य कार्य चिह्न लुप्त हों या प्रकट हों और हिंगुट वृक्ष सहसा जलने लगे तो जनपद के लिए भय चौर राजा का मरण होता है ।।38।।
'तोयावहानि सहसा रुदन्ति च हसन्ति च ।
मार्जारवच्च वासन्ति तत्र विन्द्याद् महद्भयम् ॥39॥ तोयावहानि - नदियां सहसा रोती और हंसती हुई दिखलाई पड़ें तथा मार्जार--बिल्ली के समान गन्ध आती हो तो महान् भय समझना चाहिए ॥39॥
वादित्रशब्दाः श्रूयन्ते देशे यस्मिन्न मानुषैः ।
स देशो राजदण्डेन पीड्यते नात्र संशयः ॥40॥ जिस देश में मनुष्य बिना किसी के बजाये भी बाजे की आवाज सुनते हैं, वह देश राजदण्ड से पीड़ित होता है, इसमें सन्देह नहीं है ।।40॥
तोयावहानि सर्वाणि वहन्ति रुधिरं यदा ।
षष्ठे मासे समुद्भूते सङग्रामः शोणिताकुल: ॥41॥ जिस देश में नदियों में रक्त की-सी धारा प्रवाहित होती है, उस देश में इस
1. षण्मासात्रिगुणो परान् । 2. तोयधान्यानि मु० । 3. तोयधान्यानि मु० ।