________________
196
भद्रबाहुसहिता
चाहिए ॥125॥
विलोमषु च वातेषु प्रतीष्टे वाहनेऽपि च ।
शकुनेषु च दीप्तेषु युध्यतां तु पराजयः ॥126॥ उलटी हवा चलती हो, वाहन - सवारियां प्रदीप्त मालूम पड़ें और शकुन भी दीप्त हों तो युद्ध करने वाले की पराजय होती है ।।126।।
युद्धप्रियेषु हृष्टषु नर्दत्सु वृषभेषु च।
रक्तेषु चाभ्रजालेषु सन्ध्यायां युद्धमादिशेत् । 127॥ प्रयाण-काल में तगड़े, हट्टे-कटे एवं युद्धप्रिय (लड़ाकू) साँड़ों, बैलों आदि के गर्जना करने पर और सन्ध्याकाल में बादलों के लाल होने पर युद्ध की सूचना समझनी चाहिए 1127॥
अभ्रषु च विवर्णेषु युद्धोपकरणेषु च।
दृश्यमानेषु सन्ध्यायां सद्यः संग्राममादिशेत् ॥128॥ युद्ध के उपकरण -- अस्त्र-शस्त्रादि एवं सन्ध्याकाल में बादलों के विवर्ण दिखलाई देने पर शीघ्र ही युद्ध का निर्देश समझना चाहिए ।।128॥
कपिले रक्तपीते वा हरिते च तले चमः।
स सद्यः परसैन्येन बध्यते नात्र संशयः ॥129॥ यदि प्रयाण-काल में सेना कपिल वर्ण, हरित, रक्त और पीत वर्ण के बादलों के नीचे गमन करे तो सेना निस्सन्देह शीघ्र ही शत्रुसेना के द्वारा वध को प्राप्त होती है ।।129।।
काका गृध्राः शृगालाश्च कंका ये चामिप्रियाः।
पश्यन्ति यदि सेनायां प्रयातायां भयं भवेत् ॥130॥ यदि प्रयाण करने वाली सेना के समक्ष काक, गृद्ध, शृगाल और मांसप्रिय अन्य चिड़ियाँ दिखलाई पड़ें तो सेना को भय होता है ।।1300
उलूका वा विडाला वा मूषका वायदा भृशम्।
वासन्ते यदि सेनायां निश्चित: स्वामिनो वधः ॥131॥ यदि प्रयाण करने वाली सेना में उल्ल, विडाल या मूषक अधिक संख्या में निवास करें तो निश्चित रूप से स्वामी का वध होता है ॥13॥
1. दिनेषु वाहिनेषु मु० । 2. नियतं सोऽस्ति को वध: मु.।