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भद्रबाहुसंहिता लेब घोड़े घास न खायें, जल न पीयें, हांफते हों या दौड़ते हों तो अग्निभय समझनी चाहिए ॥138॥
क्रौञ्चस्वरेण स्निग्धेन मधुरेण पुनः पुनः ।
हेषन्ते गवितास्तुष्टास्तदा राज्ञो जयावहा: ॥139॥ जब क्रौंच पक्षी स्निग्ध और मधुर स्वर से बार-बार प्रसन्न और गवित होता हआ शब्द करे तो राजा के लिए जय देने वाला समझना चाहिए ।।139।।
प्रहेषन्ते प्रयातेषु यदा वादिननि:स्वनः ।
लक्ष्यन्ते बहवो हृष्टास्तस्य राज्ञो ध्रवं जय: ।।140॥ जिस राजा के प्रयाण करने पर बाजे शब्द करते हुए दिखलाई पड़ें तथा अधिकांश व्यक्ति प्रसन्न दिखलाई पड़ें, उस राजा की निश्चयतः जय होती है ।1401
यदा मधुरशब्देन हेषन्ति खलु वाजिनः ।
कुर्यादभ्युत्थितं सैन्यं तदा तस्य पराजयम् ॥141॥ जब मधुर शब्द करते हुए घोड़े हीसने की आवाज करें तो प्रयाण करने वाली सेना की पराजय होती है ।।141।।
अभ्युत्थितायां सेनायां लक्ष्यते यच्छुभाशुभम्।
वाहने प्रहरणे वा तत् तत् फलं समोहते ॥142॥ प्रयाण करने वाली सेना के वाहन-सवारी और प्रहरण-अस्त्र-शस्त्र सेना में जितने शुभाशुभ शकुन दिखलाई पड़ें उन्हीं के अनुसार फल प्राप्त होता है ।।142॥
सन्नाहिको यदा युक्तो नष्टसैन्यो बहिर्बजेत्।
तदा राज्यप्रणाशस्तु अचिरेण भविष्यति ॥143॥ जब वस्तर से युक्त सेनापति सेना के नष्ट होने पर बाहर चला जाता है तो शीघ्र ही राज्य का विनाश हो जाता है ।।143।।
सौम्यं बाह्यं नरेन्द्रस्य हयमारहते हयः। सेनायामन्यराजानां तदा मार्गन्ति नागरा: ॥144॥
1. अपवाह मु० ।