________________
176
भद्रबाहुसंहिता
यस्माद्देवासुरे युद्धे निमित्तं दैवतैरपि । कृतं प्रमाणं तस्माद्वै विविधं देवतं मतम् ॥7॥
देवासुर संग्राम में देवताओं ने भी निमित्तों का विचार किया था, अतः राजाओं को सर्वदा निश्चयपूर्वक निमित्तों की पूजा करनी चाहिए -- निमित्तों के शुभाशुभ के अनुसार यात्रा करनी चाहिए || 7 ||
हस्त्यश्वरथपादातं बलं खलु चतुविधम् ।
निमित्ते तु तथा ज्ञेयं यत्र तत्र शुभाशुभम् ॥8॥
हाथी, घोड़ा, रथ और पैदल इस प्रकार चार तरह की चतुरंग सेना होती है । यात्रा कालीन निमित्तों के अनुसार उक्त प्रकार की सेना का शुभाशुभत्व अवगत करना चाहिए ॥ 8 ॥
'शनैश्चरगता एव हीयन्ते हस्तिनो 'यदा । अहोरात्रान्यमात्रोद्युः तत्प्रधानवधस्मृतः ॥१॥
यदि कोई राजा ससैन्य शनिश्चर को यात्रा करे तो हाथियों का विनाश होता है । अहर्निश यमराज का प्रकोप रहता है तथा प्रधान सेना नायक का वध होता
11911
यावच्छायाकृतिरवर्हीयन्ते वाजिनो यदा ।
विगनस्का विगतय: ' तत्प्रधानवधः स्मृतः ॥10॥
यदि घोड़ों की छाया, आकृति और हिनहिनाने की ध्वनि -आवाज हीयमान हो तथा वे अन्यमनस्क और अस्त-व्यस्त चलते हों तो सेनापति का वध होता
11011
'मेघशंखस्वरा भास्तु हेमरत्नविभूषिताः ।
छायाहीनाः प्रकुर्वन्ति तत्प्रधानवधस्तथा ॥11॥
यदि स्वर्ण आभूषणों से युक्त घोड़े मेघ के समान आकृति और शंख ध्वनि के समान शब्द करते हुए छायाहीन दिखलाई पड़ें तो प्रधान सेनापति के वध की सूचना देते हैं ॥11॥
1. पूर्वं च पूजिना ह्येते निमित्ता मूभूतैरपि । तस्माद्वै पूजनीयाश्च निमित्ताः सततं नृपैः ॥ 7 ॥ 2. तत्र मु० । 3. गतिस्वरमदांपेक्षा मु० । 4. यथा मु० । 5. वधस्तथा मु० । 6. प्रधानस्य वधस्तथा मु० । 7. मेखशंखस्वनाभाश्च मु० । 8. छायाप्रहीणा कुर्वन्ति मु० । 9. तदा मु० ।