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द्वादशोऽध्यायः
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तक फैल कर जल की वर्षा करता है । चतुर्निमित्तक पुष्ट गर्भ 50 योजन, त्रिनिमित्तक 25 योजन, द्विनिमित्तक 122 योजन और एक निमित्तक 5 योजन तक जल की वर्षा करता है । पञ्चनिमित्तों में पवन, जल, बिजली, गर्जना और मेघ शामिल हैं । वर्षा का प्रभाव भी निमित्तों के अनुसार ही ज्ञात किया जाता है | पञ्चनिमित्त मेघगर्भ से एक द्रोण जल की वर्षा, चतुर्निमित्तक से बारह आढक जल की वर्षा, त्रिनिमित्तक से 8 आढक जल की वर्षा, द्विनिमित्तक से 6 आढक और एक निमित्तक से 3 आढक जल की वर्षा होती है । यदि गर्भकाल में अधिक जल की वर्षा हो जाय तो प्रसवकाल के अनन्तर ही जल की वर्षा होती है ।
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मेघविजयगणि ने मेघगर्भ का विचार करते हुए लिखा है कि मार्गशीर्ष शुक्ला प्रतिपदा के उपरान्त जब चन्द्रमा पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र पर स्थित हो, उसी समय गर्भ के लक्षण अवगत करने चाहिए । जिस नक्षत्र में मेघ गर्भ धारण करते हैं, उससे 195 वें दिन जब वही नक्षत्र आता है तो जल-वृष्टि होती है । मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष का गर्भ तथा पौष कृष्णपक्ष का गर्भ अत्यल्प वर्षा करने वाला होता है । माघ शुक्लपक्ष का गर्भ श्रावण में और माघ कृष्ण का गर्भ भाद्रपद शुक्ल में जल की वृष्टि करता है । फाल्गुन शुक्ल का गर्भ भाद्रपद कृष्ण में, फाल्गुन कृष्ण का आश्विन शुक्ल में, चैत्र शुक्ल का गर्भ आश्विन कृष्ण में, चैत्र कृष्ण का गर्भ कार्तिक शुक्ल में जल की वर्षा करता है । सन्ध्या समय पूर्व में आकाश मेघाच्छादित हो और ये मेघ पर्वत या हाथी के समान हों तथा अनेक प्रकार के श्वेत हाथियों के समान दिखलाई पड़ें तो पाँच या सात रात में अच्छी वर्षा होती है । सन्ध्या समय उत्तर में आकाश मेघाच्छादित हो और मेघ पर्वत या हाथ के समान मालूम पड़ें तो तीन दिन में उत्तम वर्षा होती है । सन्ध्या समय पश्चिम दिशा में श्याम रंग के मेघ आच्छादित हों तो सूर्यास्त काल में ही जल की उत्तम वर्षा होती है । दक्षिण और आग्नेय दिशा के मेघ, जिन्होंने पौष में गर्भ धारण किया है, अल्प वर्षा करते हैं । श्रावण मास में ऐसे मेघों द्वारा श्रेष्ठ वर्षा होने की सम्भावना रहती है । आग्नेय दिशा में अनेक प्रकार के आकार वाले मेघ स्थित हों तो इति, सन्ताप के साथ सामान्य वर्षा करते हैं । वायव्य और ईशान दिशा के बादल शीघ्र ही जल बरसाते हैं । जिन मेघों ने किसी भी महीने की चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी और सप्तमी को गर्भ धारण किया है, वे मेघ शीघ्र ही जल - वृष्टि करते हैं । मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष में मघा नक्षत्र में मेघ गर्भ धारण करे अथवा मार्गशीर्ष कृष्णा चतुर्दशी को मेघ और बिजली दिखलाई पड़े तो आषाढ़ शुक्ल पक्ष में अवश्य ही जल-वृष्टि होती है ।
मार्गशीर्ष कृष्ण चतुर्थी, पंचमी और षष्ठी इन तिथियों में आश्लेषा, मघा