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एकादशोऽध्यायः
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शून्य शेष में पीड़ा समझनी चाहिए। ____ अन्य नियम-विक्रम संवत् की संख्या को तीन से गुणा कर पाँच जोड़ना चाहिए । योगफल में सात का भाग देने से शेष क्रमानुसार फल जानना। 3 और 5 शेष में दुभिक्ष, शून्य में महाकाल और 1, 2, 4, 6 शेष में सुभिक्ष होता है।
उदाहरण-विक्रम संवत् 2048, इसे तीन से गुणा किया; 2048x3= 6144, 6144+5=6149, इसमें 7 का भाग दिया, 6149:7-878 लब्धि, शेष 3 रहा । इसका फल दुर्भिक्ष हुआ।
प्रभवादि संवत्सरबोधक चक्र
| संवत्सर संख्या संवत्सर संख्या संवत्सर संख्या संवत्सर
प्रभव | 16 |चित्रभानु 31 हेमलम्बी परिधावी विभव | 17 | सुभानु 32 विलम्बी | 47 | प्रमादी शुल्क
तारण विकारी आनन्द प्रमोद पार्थिव शार्वरी राक्षस प्रजापति | 20] व्यय | प्लव
नल अंगिरा 1 21 | सर्वजित् शुभकृत् पिंगल श्रीमुख 22 | सर्वधारी शोभन मालयुक्त भाव विरोधी
सिद्धार्थी युवा
विकृति | 39 विश्वावसु धाता
| पराभव 55 | दुर्मति ईश्वर
नन्दन | प्लवंग 56 | दुन्दुभि बहुधान्य विजय
57 रुधिरोद्गारी प्रमाथी
सौम्य रक्ताक्षी विक्रम मन्मथ | 44 साधारण क्रोधन
| 45 विरोधकृत 60 | क्षय
रौद्र
-
स्वर
-
-
-
कीलक
जय
क्षय
वष
दुर्मुख