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एकादशोऽध्यायः
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क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों के नाश का कारण माना है। उत्तर दिशा में गन्धर्वनगर हो तो राजाओं को जयदायी; ईशान, अग्नि और वायुकोण में स्थित हो तो नीच जाति का नाश होता है । शान्त दिशा में तोरणयुक्त गन्धर्वनगर दिखलाई दे तो प्रशासकों की विजय होती है। यदि सभी दिशाओं में गन्धर्वनगर दिखलाई दे तो राजा और राज्य के लिए समान रूप से भयदायक होता है। धूम, अनल और इन्द्रधनुष के समान हो तो चोर और वनवासियों को कष्ट देता है । कुछ पाडुरंग का गन्धर्वनगर हो तो वज्रपात होता है, भयंकर पवन भी चलता है। दीप्त दिशा में गन्धर्वनगर हो तो राजा की मृत्यु, वाम दिशा में हो तो शत्रुभय और दक्षिण भाग में स्थित हो तो जय की प्राप्ति होती है। नाना रंग की पताका से युक्त गन्धर्वनगर दिखलाई पड़े तो रण में हाथी, मनुष्य और घोड़ों का अधिक रक्तपात होता है।
आचार्य ऋषिपुत्र ने बतलाया है कि पूर्व दिशा में गन्धर्वनगर दिखाई पड़े तो पश्चिम दिशा का नाश अवश्य होता है। पश्चिम में अन्न और वस्त्र की कमी रहती है। अनेक प्रकार के कष्ट पश्चिम निवासियों को सहन करने पड़ते हैं। दक्षिण दिशा में गन्धर्वनगर दिखलाई दे तो राजा का नाश होता है, प्रशासक वर्ग में आपसी मनमुटाव भी रहता है, नेताओं में पारस्परिक कलह होती है, जिससे आन्तरिक अशान्ति होती रहती है। पश्चिम दिशा का गन्धर्वनगर पूर्व के वैभव का विनाश करता है। पूर्व में हैजा, प्लेग जैसी संक्रामक बीमारियां फैलती हैं और मलेरिया का प्रकोप भी अधिक रहेगा। उक्त दिशा का गन्धर्वनगर पूर्व दिशा के निवासियों को अनेक प्रकार का कष्ट देता है । उत्तर दिशा का गन्धर्वनगर उत्तर निवासियों के लिए ही कष्टकारक होता है। यह धन, जन और वैभव का विनाश करता है। हेमन्तऋतु के गन्धर्वनगर से रोगों का विशेष आतंक रहता है । वसन्त ऋतु में दिखाई देनेवाला गन्धर्वनगर सुकाल करता है तथा जनता का पूर्णरूप से आर्थिक विकास होता है । ग्रीष्मऋतु में दिखलाई देनेवाला गन्धर्वनगर नगर का विनाश करता है, नागरिकों में अनेक प्रकार से अशान्ति फैलाता है । अनाज की उपज भी कम होती है । वस्त्राभाव के कारण भी जनता में अशान्ति रहती है । आपस में भी झगड़े बढ़ते हैं, जिससे परिस्थिति उत्तरोत्तर विषम होती जाती है। वर्षा ऋतु में दिखलाई देनेवाला गन्धर्वनगर वर्षा का अभाव करता है। इस गन्धर्व नगर का फल दुष्काल भी है। व्यापारी और कृषक दोनों के लिए ही इस प्रकार के गन्धर्वनगर का फलादेश अशुभ होता है। जिस वर्ष में उक्त प्रकार का गन्धर्वनगर दिखलाई पड़ता है, उस वर्ष में गेहूँ और चावल की उपज भी बहुत कम होती है। शरदऋतु में गन्धर्वनगर दिखाई पड़े तो मनुष्यों को अनेक प्रकार की पीड़ा होती है। चोट लगना, शरीर में घाव लगना, चेचक निकलना एवं अनेक प्रकार के फोड़े होना आदि फल घटित होते हैं। अवशेष ऋतुओं में गन्धर्वनगर