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एकादशोऽध्यायः
145 नीरव दिशा में गन्धर्वनगर दिखलाई पड़े तो राजवृद्धि का फलादेश समझना चाहिए ॥2011
यदा 1चाभ्रर्घनैमिश्रं सघनैः सबलाहकम् ।
गन्धर्वनगरं स्निग्धं विन्द्यादुदकसंप्लवम् ॥21॥ यदि शुभ मेघों से युक्त विद्य त् सहित स्निग्ध गन्धर्वनगर दिखलाई पड़े तो जल की बाढ़ आती है-वर्षा अधिक होती है और नदियों में बाढ़ आती है; सर्वत्र जल ही जल दिखलाई पड़ता है ।।211
सध्वजं सपताकं वा गन्धर्वनगरं भवेत ।
दीप्तां दिशं समाश्रित्य नियतं राजमृत्युदम् ॥22॥ यदि ध्वजा और पताका सहित गन्धर्वनगर पूर्व दिशा में दिखलाई पड़े तो नियमित रूप से राजा की मृत्यु होती है ॥22॥
विदिक्षु 'चापि सर्वासु गन्धर्वनगरं यदा।
संकर: सर्ववर्णानां तदा भवति दारुणः ॥23॥ यदि सभी विदिशाओं में गन्धर्वनगर दिखलाई पड़े तो सभी वर्गों का अत्यन्त संकर-सम्मिश्रण होता है ।। 23॥
द्विवर्णं वा त्रिवर्णं वा गन्धर्वनगरं भवेत् ।
चातुर्वर्ण्यमयं भेदं तदाऽत्रापि विनिदिशेत् ॥24॥ यदि दो रंग, तीन रंग या चार रंग का गन्धर्वनगर दिखलाई पड़े तो भी उक्त प्रकार का ही फल घटित होता है ।।24।।
अनेकवर्णसंस्थानं गन्धर्वनगरं यदा । क्षुभ्यन्ते तत्र राष्ट्राणि ग्रामाश्च नगराणि च ॥25॥ सङग्रामाश्चापि जायन्ते' मांसशोणितकईमा:।
Bएतैश्च लक्षणैर्युक्तं भद्रबाहुवचो यथा ॥26॥ यदि अनेक वर्ण आकार का गन्धर्वनगर दिखलाई पड़े तो नगर, ग्राम और राष्ट्र में क्षोभ उत्पन्न होता है, युद्ध होते हैं और स्थान मांस तथा रक्त की कीचड़ से भर जाते हैं । उक्त प्रकार के निमित्त से अनेक प्रकार का उत्पात होता है, इस प्रकार का भद्रबाहु स्वामी का वचन है ।।25-26॥
1. शुभ- मु० । 2. सविद्युत् म० । 3. यदा मु० 4. चैव मु० । 5. यदा मु०। 6. भवेत् मृ । 7. अनुवर्तन्ते मु० । 8. एतस्मिल्लक्षणोत्पाते मु० ।