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भद्रबाहुसंहिता
शुष्क -सूखे काष्ठादि जलने लगें, कुछ-कुछ वर्षा भी हो और अग्नि की लौ धूमयुक्त हो तो सेना लौट आती है ।।63।।
'जुह्वतो दक्षिणं देशं यदि गच्छन्ति चाचिषः।
राज्ञो विजयमाचष्टे वामतस्तु पराजयम् ॥64॥ ___ यदि राजा के गमन समय में दक्षिण ओर हवन करती हुई अग्नि दिखलाई पड़े तो विजय और बायीं ओर उक्त प्रकार की अग्नि दिखलाई पड़े तो पराजय होती है ॥640
जुह्वत्यनुपसर्पणस्थानं तु यत् पुरोहितः।
जित्वा शत्रून् रणे सर्वान् राजा तुष्टो निवर्तते ॥65॥ यदि पुरोहित ढालू स्थान पर यज्ञ करता हो अथवा जिधर राजा गमन कर रहा हो, उधर पुरोहित यज्ञ करता हो तो समस्त शत्रुओं को जीत कर प्रसन्न होता हुआ राजा लौटता है ।।6511
यस्य वा सम्प्रयातस्य सम्मुखो पृष्ठतोऽपि वा।
पतत्युल्का सनिर्घाता वधं तस्य निवेदयेत् ॥66॥ प्रयाण करने वाले जिस राजा के सम्मुख या पीछे घर्षण करती हुई उल्का गिरे तो उस राजा का वध होता है ।।66।।
सेनां यान्ति प्रयातां यां ऋव्यादाश्च जुगुप्सिताः ।
अभीक्ष्णं विस्वरा घोरा: सा सेना वध्यते परैः ॥67॥ घृणित मांसभक्षी जन्तु- शेर, व्याघ्र, गृद्ध आदि जन्तु बार-बार विकृत और भयंकर शब्द करते हुए प्रयाण करने वाली सेना का अनुगमन करें तो सेना शत्रुओं द्वारा वध को प्राप्त होती है ।।67।।
प्रयाणे निपतेदुल्का प्रतिलोमा यदा चमूः ।
निवर्तयति मासेन तत्र यात्रा न 'सिध्यति ॥68॥ जब सेना के प्रयाण के समय विपरीत दिशा में उल्कापात होता है, तब सेना एक महीने में लौट आती है और यात्रा सफल नहीं होती ।।68॥
छिन्ना भिन्ना प्रदश्यत तदा सम्प्रस्थिता चमूः। निवर्तयेत सा शीघ्रन सा सिद्ध्यति कुत्रचित् ॥69॥
____ 1. युद्ध प्रदक्षिणं देवा यदि गच्छति वा दिशम् मु० । 2. सम्पन्नस्थानं मु०। 3. प्रमुखे मु० । 4. सिद्ध्यते मु० ।