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भद्रबाहुसंहिता प्रकार के मेघ का दर्शन व्यक्ति और समाज दोनों के लिए मंगल करने वाला होता है।
पौषबदी सतमी तिथि मांही, बिन जल बादल गर्जत आहीं। पूनो तिथि सावन के मास, अतिशय वर्षा राखो आस ॥ पौषबदी दशमी तिथि मांही, जौ वर्ष मेघा अधिकाहीं। तो सावन बदि दशमी दरसे, सो मेघा पुहुमी बहु बरसे ।। रवि या रवि सुत ओ अंगार, पूस अमावस कहत गोआर ।
अपन अपन घर चेतहु जाय, रतनक मोल अन्न बिकाय ।। पौष बदी सप्तमी को बिना जल बरसाये बादल गर्जना करें तो श्रावण पूर्णिमा को अत्यन्त वर्षा होती है। यदि पौप बदी दशमी तिथि को अधिक वर्षा हो तो श्रावण बदी दशमी को इतना अधिक जल बरसता है कि पानी पृथ्वी पर नहीं समाता । पौष अमावस्या, शनिवार और रविवार को मंगलवार हो तो अन्न का भाव अत्यन्त मंहगा होता है । वर्षा की कमी रहती है। पौप मास में वर्षा होना और मेघों का छाया रहना अच्छा समझा जाता है। यदि इस महीने में आकाश निरभ्र दिखलाई पड़े तो दुष्काल के लक्षण समझना चाहिए । पौष पूर्णिमा को प्रातःकाल श्वेत रंग के बादल आकाश में आच्छादित हों तो आषाढ़ और श्रावण मास में अच्छी वर्षा होती है और सभी वर्ण वाले व्यक्ति को आनन्द की प्राप्ति होती है । यदि पौष शुक्ला चतुर्दशी को आकाश में गर्जना करते हुए बादल दिखलाई पड़ें तो भाद्रपद मास में अच्छी वर्षा होती है । माघ मास के मेघों का फल डाक ने निम्न प्रकार बतलाया है
माघ बदी सतमी के ताईं, जो विज्जु चमके नभ माई । मास बारहों बरसे मेह, मत सोचो चिन्ता तज देह ।। माघ सुदी पडिवा के मध्य, दमके विज्जु गरजे बद्ध । तेल आस सुरही दीनन मार, महगो होवे 'डाक' गोआर ।। माघ बदी तिथि अष्टमी, दशमी पूस अन्हार । 'डाक' मेघ देखी दिना, सावन जलद अपार ॥ माघ द्वितीया चन्द्रमा, वर्षा बिजुली होय । 'डाक' कहथि सुनह नृपति, अन्नक महंगी होय ॥ माघ तृतीया सूदि में, वर्षा बिजुली देख । 'डाक' कहथि जौ गहुँम अति, मंहग वर्ष दिन लेख ॥ माघ सुदी के चौथ में, जौं लागे घन देख । महगो होवे नारियल, रहे न पानहिं शेष ॥