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भद्रबाहुसंहिता बढ़ती है तथा मुद्रा का चलन तेज हो जाता है। लेकिन दस दिन के बाद अनिष्ट या अशुभ होता है ।। 13-1411
नवतिराढकानि स्युरुत्तरायां समादिशेत् । स्थलेष वापयेद बीज सर्वसस्यं समद्धयति ॥15॥ क्षेमं सुभिक्षमारोग्य विशदात्रमपग्रहः।
दिवसानां विजानायाद् भद्रबाहुवचो यथा ॥16॥ यदि प्रथम वर्षा उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में हो तो 90 आढक प्रमाण जल-वृष्टि होती है । स्थल में बोया गया बीज भी समृद्धि को प्राप्त होता है, तथा सभी प्रकार के अनाज बढ़त हैं । क्षेम, सुभिक्ष और आरोग्य की प्राप्ति होती है तथा 20 दिन के पश्चात् आग्रह-अशुभ होता है, ऐसा भद्रबाहु स्वामी का वचन है ।।15-16।।
चतुःषष्टिमाढकानीह रेवत्यामभिनिदिशेत् । सस्यानि च समृद्धयन्ते सर्वाण्येव यथाक्रमम् ॥17॥ उत्पद्यन्ते च राजान: परस्पविरोधिनः ।
यानयुग्यानि शोभन्ते बलवइंष्टिवर्धनम् ॥18॥ यदि प्रथम वर्षा रेवती नक्षत्र में हो तो उस वर्ष 64 आढक प्रमाण जल-वृष्टि होती है और क्रम से सभी प्रकार के अनाज की समृद्धि होती है। राजाओं में परस्पर विरोध उत्पन्न होता है, सेना और दंष्ट्रधारी-चूहों की वृद्धि होती है ॥17-18।।
एकोनानि तु पंचाशदाढकानि समादिशेत् । अश्विन्यां कुरुते यत्र प्रवर्षणमसशयः॥19॥ 'भवेतामुभये सस्ये पोड्यन्ते यवनाः शकाः ।
गान्धारिकाश्च काम्बोजा: पांचालाश्च चतुष्पदाः ॥20॥ यदि प्रथम वर्षा अश्विनी नक्षत्र में हो तो 49 आढ़क जल की वर्षा होती है, इसमें कोई भी सन्देह नहीं है । कार्तिकी और वैशाखी दोनों ही प्रकार की फसल होती है । यवन, शक, गान्धार, काम्बोज, पांचाल और चतुष्पद पीड़ित होते हैं अर्थात उन्हें नाना प्रकार के कष्ट होते हैं ।।19-2011
एकोनविंशतिविन्द्यादाढकानि न संशयः ।
भरण्यां वासवश्चैव यदा कुर्यात् प्रवर्षणम् ॥21॥ 1. सर्वमुक्त आ० । 2. विसरात्रं मु. A. B. D.। 3. उद्वेजन्ते मु० A. B. D. I 4. परम्पर-विरोधकृत म० A., परस्परविनाशिन: मु. C.। 5. बलवद्राष्ट्रबन्धनम् मु० । 6. एकान्यूनानि मु० C. 1 7. भवेत् म०, भत्रे म०, D., भवेतत् मु. C. 18. वापि मु० C. 9. सकाम्बोजा: आ० ।