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भद्रबाहुसंहिता
मनोरंजन के साधनों की कमी रहती है। राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से उक्त नक्षत्रों की वर्षा साधारण फल देती है। देश में सभी प्रकार की समृद्धि बढ़ती है और नागरिकों में अभ्युदय की वृद्धि होती है। यद्यपि उक्त नक्षत्रों की वर्षा फसल की वृद्धि के लिए शुभ है, पर आन्तरिक शान्ति में बाधक होती है। भीतरी आनन्द प्राप्त नहीं हो पाता और आन्तरिक अशान्ति बनी ही रह जाती है । उत्तरा फाल्गुनी और हस्त नक्षत्र में प्रथम वर्षा होने से सुभिक्ष और आनन्द दोनों की ही प्राप्ति होती है । वर्षा प्रचुर परिमाण में होती है, फसल की उत्पत्ति भी अच्छी होती है । विशेषतः धान की फसल खूब होती है। पशु-पक्षियों को भी शान्ति और सुख मिलता है । तृण और धान्य दोनों की उपज अच्छी होती है। आर्थिक शान्ति के विकास के लिए उक्त नक्षत्रों में वर्षा होना अत्यन्त शुभ है। गुड़ की फसल बहुत अच्छी होती है तथा गुड़ का भाव भी सस्ता रहता है। जूट की फसल साधारण होती है, इसका भाव भी आरम्भ में सस्ता, पर आगे जाकर तेज हो जाता है । व्यापारियों के लिए भी उक्त नक्षत्रों की वर्षा सुखदायक होती है । साधारणतः व्यापार बहुत ही अच्छा चलता है। देश में कल-कारखानों का विकास भी अधिक होता है । चित्रा नक्षत्र में प्रथम जल की वर्षा हो तो वर्षा अत्यन्त कम होती है, परन्तु भाद्रपद और आश्विन में वर्षा का योग अच्छा रहता है । स्वाती नक्षत्र में प्रथम वर्षा होने से मामूली वर्षा होती है। श्रावण मास में अच्छा पानी बरसता है, जिससे फसल अच्छी हो जाती है। कात्तिकी फसल साधारण ही रहती है, पर चैत्री फसल अच्छी हो जाती है; क्योंकि उक्त नक्षत्र की वर्षा आश्विन मास में भी जल की वर्षा का योग उत्पन्न करती है । यदि विशाखा और अनुराधा नक्षत्र में प्रथम जल की वर्षा हो तो उस वर्ष खूब जल-वृष्टि होती है । तालाब और पोखरे प्रथम जल की वर्षा से ही भर जाते हैं । धान, गेहूं, जूट
और तिलहन की फसल विशेष रूप से उत्पन्न होती है। व्यापार के लिए यह वर्ष साधारणतया अच्छा होता है । अनुराधा में प्रथम वर्षा होने से गेहूं में एक प्रकार का रोग लगता है जिससे गेहूं की फसल मारी जाती है। यद्यपि गन्ना की फसल बहुत अच्छी उत्पन्न होती है। व्यापार की दृष्टि से अनुराधा नक्षत्र की वर्षा बहुत उत्तम है। इस नक्षत्र में वर्षा होने से व्यापार में उन्नति होती है । देश का आर्थिक विकास होता है तथा कला-कौशल की भी उन्नति होती है । ज्येष्ठ नक्षत्र में प्रथम वर्षा होने से पानी बहत कम बरसता है, पशुओं को कष्ट होता है । तृण की उत्पत्ति अनाज की अपेक्षा कम होती है, जिससे पालतू पशुओं को कष्ट उठाना पड़ता है । मवेशी का मूल्य सस्ता भी रहता है । दूध की उत्पत्ति भी कम होती है। उक्त प्रकार की वर्षा देश की आर्थिक क्षति की द्योतिका है। धन-धान्य की कमी होती है, संक्रामक रोग बढ़ते हैं। चेचक का प्रकोप विशेष रूप से होता है । सम-शीतोष्ण वाले प्रदेशों को मौसम बदल जाने से यह वर्षा विशेष कष्ट की