________________
दशमोऽध्यायः
131
मृगशिर हो तो खण्डवृष्टि होती है तथा कृषि में अनेक प्रकार के रोग भी लगते हैं । इस नक्षत्र की वर्षा व्यापार के लिए भी उत्तम नहीं है । राजा या प्रशासक को भी कष्ट होते हैं । मन्त्री- पुत्र या किसी बड़े अधिकारी की मृत्यु भी दो महीने में होती है। आर्द्रा नक्षत्र में प्रथम जल-वृष्टि हो तो खण्डवृष्टि का योग रहता है, फसल साधारणतया आधी उत्पन्न होती है । चीनी, गुड़, और मधु का भाव सस्ता रहता है । श्वेत रंग के पदार्थों में कुछ महँगाई आती है । पुनर्वसु नक्षत्र में प्रथम वर्षा हो तो एक महीने तक लगातार जल बरसता है। फसल अच्छी नहीं होती तथा बोया गया बीज भी मारा जाता है । आश्विन और कार्तिक में वर्षा का अभाव रहता है और सभी वस्तुएं प्रायः महंगी होती हैं, लोगों में धर्माचरण की प्रवृत्ति होती है । रोग-व्याधियों के लिए उक्त प्रकार का वर्ष अत्यन्त अनिष्टकर होता है, सर्वत्र अशान्ति और असन्तोष दिखलाई पड़ता है; तो साधारण जनता का ध्यान धर्म-साधन की ओर अवश्य जाता है । पुष्य नक्षत्र में प्रथम जल वर्षा होने पर समयानुकूल जल की वर्षा एक वर्ष तक होती रहती है, कृषि बहुत उत्तम होती है, खाद्यान्नों के सिवाय फलों और मेवों की अधिक उत्पत्ति होती है । प्रायः समस्त वस्तुओं के भाव गिरते हैं। जनता में पूर्णतया शान्ति रहती है, प्रशासक वर्ग की समृद्धि बढ़ती है। जनसाधारण में परस्पर विश्वास और सहयोग की भावना का विकास होता है । यदि आश्लेषा नक्षत्र में प्रथम जल की वर्षा हो तो वर्षा उत्तम नहीं होती, फसल की हानि होती है, जनता में असन्तोष और अशान्ति फैलती है । सर्वत्र अनाज की कमी होने से हाहाकार व्याप्त हो जाता है । अग्निभय और शस्त्रभय का आतङ्क उस प्रदेश में अधिक रहता है । चोरी और लूट का व्यापार अधिक बढ़ता है । दैन्य और निराशा का संचार होने से राष्ट्र में अनेक प्रकार के दोष प्रविष्ट होते हैं । यदि इस नक्षत्र में वर्षा के साथ ओले भी गिरें तो जिस प्रदेश में इस प्रकार की वर्षा हुई है, उस प्रदेश के लिए अत्यन्त भयकारक समझना चाहिए । उक्त प्रदेश में प्लेग, हैजा जैसी संक्रामक बीमारियाँ अधिक बढ़ती हैं, जनसंख्या घट जाती है । जनता सब तरह से कष्ट उठाती है । आश्लेषा नक्षत्र में तेज वायु के साथ वर्षा हो तो एक वर्ष पर्यन्त उक्त प्रदेश को कष्ट उठाना पड़ता है, धूल और कंकड़ पत्थरों के साथ वर्षा हो तथा चारों ओर बादल मण्डलाकार बन जाएँ, तो निश्वयतः उस प्रदेश में अकाल पड़ता है तथा पशुओं की भी हानि होती है और अनेक प्रकार के कष्ट उठाने पड़ते हैं । प्रशासक वर्ग के लिए उक्त प्रकार की वर्षा भी कष्टकारक होती है ।
यदि मघा और पूर्वा फाल्गुनी में प्रथम वर्षा हो तो समयानुकूल वर्षा होती है, फसल भी उत्तम होती है । जनता में सब प्रकार का अमन-चैन व्याप्त रहता है । कलाकार और शिल्पियों के लिए उक्त नक्षत्रों की वर्षा कष्टप्रद है तथा