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दशमोऽध्यायः
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अपग्रहं तु जानीयाद् दशाहं प्रौष्ठपादिकम् ।
क्षेमं सुभिक्षमारोग्यं तां समा नाऽत्र संशयः ॥48॥ विशाखा में प्रथम वृष्टि हो तो एक खारी प्रमाण 16 द्रोण निस्सन्देह जल बरसता है। फसल बहुत अच्छी होती है तथा व्यापार भी निर्बाध रूप से चलता है । भाद्रपद मास में दश दिन जाने पर अपग्रह-अनिष्ट होता है। यों इस वर्ष में निस्सन्देह क्षेम, सुभिक्ष, आरोग्य की स्थिति होती है ॥47-48॥
जानीयादनुराधायां खारीमेकां प्रवर्षणम् । तदा सभिक्षं सक्षेमं परचक्र प्रशाम्यति ॥49॥ दरं प्रवासिका यान्ति धर्मशीलाश्च मानवाः ।
मैत्री च स्थावरा ज्ञेया शाम्यन्तं चेतयस्तदा ॥50॥ यदि अनुराधा नक्षत्र में प्रथम जल-वृष्टि हो तो एक खारी प्रमाण-16 द्रोण प्रमाण जल उस वर्ष बरसता है। क्षेम, सुभिक्ष और आरोग्य रहते हैं तथा परशासन भी शान्त रहता है। इस वर्ष दूर के प्रवासी भी वापस आते हैं, सभी व्यक्ति धर्मात्मा रहते हैं । मित्रता स्थिर होती है तथा भय और आतंक नष्ट होते जाते हैं ॥49-50॥
ज्येष्ठायामाढकानि स्युर्दशश्चाष्टौ विनिर्दिशेत् ।
स्थलेषु वापयेद् बीजं तदा भूदाहविद्रवम् ॥5॥ ज्येष्ठा नक्षत्र में प्रथम वर्षा हो तो 18 आढक प्रमाण जल-वृष्टि होती है। स्थल में बीज बोने पर भी फसल उत्तम होती है; किन्तु भूकम्प, भूदाह, आदि उपद्रव भी होते हैं । तात्पर्य यह है कि ज्येष्ठा नक्षत्र की प्रथम वर्षा फसल के लिए उत्तम है ।।51॥
मलेन खारी विज्ञया सस्यं सर्व समृद्धयति।
एकमलानि पीड्यन्ते 'वर्द्धन्ते तस्करा अपि ॥52॥ मूल नक्षत्र में प्रथम वर्षा हो तो एक खारी प्रमाण जल बरसता है और सभी प्रकार के अनाजों की उत्पत्ति खूब होती है । सैनिक-योद्धा पीड़ा प्राप्त करते हैं तथा चोरों की वृद्धि होती है ।। 52॥
1. सस्यं सम्पयेत् सर्व वाणिज्यं पीड्यते न हि मु०। 2. खारि प्रवर्षणं यदा मु० । 3. क्षेमं सुभिक्षमारोग्यं मु० । 4. चतुःपष्टि मु० । 5. विद्रवः मु०। 6. विजानीयात् मु० । 7. चौगश्च प्रबलाश्च ये मु० ।