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भद्रबाहुसंहिता
चाहिए । इसका फल कहीं वर्षा, कहीं सूखा तथा कहीं पर महामारी और कहीं पर उपद्रव होना समझना चाहिए। भाद्रपद सुदी पंचमी स्वाती नक्षत्र में हो और इस दिन मेघ आकाश में सघन हों तथा वर्षा हो रही तो सर्वत्र सुख-शान्ति व्याप्त होती है और जगत् के सभी दुःख दूर हो जाते हैं तथा सर्वत्र मंगल होता है । इस महीने में भरणी नक्षत्र में वर्षा हो और मेघ आकाश में व्याप्त हों तो सर्वत्र सुभिक्ष होता है। गेहूं, चना, जौ, धान, गन्ना, कपास और तिलहन की फसल खूब उत्पन्न होती है । भाद्रपद मास की पूर्णिमा को जल बरसे तो जगत् में सुभिक्ष होता है । भाद्रपद मास में अश्विनी और रोहिणी नक्षत्र में आकाश में बादल व्याप्त हों, पर वर्षा न हो तो पशुओं में भयंकर रोग फैलता है। आर्द्रा और पुष्य में रक्त वर्ण के मेघ संघर्षरत दिखलाई पड़ें तो विद्रोह और अशान्ति की सूचना समझनी चाहिए । यदि इन नक्षत्रों में वर्षा भी हो जाए तो शुभ फल होता है। श्रवण नक्षत्र की वर्षा उत्तम मानी गयी है । भाद्रपद कृष्णा प्रतिपदा को श्रवण नक्षत्र हो और आकाश में मेघ हों तो सुभिक्ष होता है ।
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नवमोऽध्यायः
अथातः सम्प्रवक्ष्यामि वातलक्षणमुत्तमम्' । प्रशस्तमप्रशस्तं च यथावदनुपूर्वशः 2 ॥1॥
के द्वारा
अब मैं वायु का उत्तम लक्षण पूर्वाचार्यों के अनुसार कहूँगा । वायु निरूपित फलादेश के भी दो भेद किये जा सकते हैं - प्रशस्त और अप्रशस्त ।। 1 ।।
वर्ष भयं तथा क्षेमं राज्ञो जय-पराजयम् । मारुतः कुरुते लोके जन्तूनां पुण्यपापजम् ॥2॥
वायु संसारी प्राणियों के पुण्य एवं पाप से उत्पन्न होने वाले वर्षण, भय, क्षेम और राजा के जय-पराजय को सूचित करती है ||2||
1. संक्रमम् मु० C.। 2. पूर्वतः मु० 1 3. पापजाम् मु० ।