________________
106
भद्रबाहुसंहिता दिवसाधं यदा वाति पूर्वमासौ तु सोदकौ।
चतुर्भागेण मासस्तु शेष ज्ञेयं यथाक्रमम् ॥9॥ यदि आषाढ़ी पूर्णिमा के आधे दिन – दोपहर तक पूर्व दिशा का वायु चले तो पहले दो महीने अच्छी वर्षा के समझना चाहिए और चौथाई दिन-एक प्रहर भर वह वायु चले तो एक महीना अच्छी वर्षा ज्ञात करना चाहिए। इसी क्रम से वायु और वर्षा का हिसाब जानना चाहिए ।।9।।
पूर्वार्धदिवसे ज्ञेयौ पूर्वमासौ तु सोदकौ'।
पश्चिमे पश्चिमौ मासौ ज्ञेयौ द्वावपि सोदकौ ॥10॥ यहाँ इतना विशेष और जानना चाहिए कि उस दिन यदि पूर्वार्ध में पूर्व वायु चले तो पहले दो महीने और उत्तरार्ध में वायु चले तो अगले दो महीने अच्छी वर्षा के समझना चाहिए ।।10।।
हित्वा पूर्व तु दिवसं मध्याह्न यदि वाति चेत् ।
वायुमध्यममासात्तु तदा देवो न वर्षति ॥11॥ यदि दिन के पूर्व भाग को छोड़कर मध्याह्न में उस दिन वायु चले तो मध्यम मास से मेघ नहीं बरसेगा, ऐसा जानना चाहिए ।। 11॥
आषाढीपूर्णिमायां तु दक्षिणो मारुतो यदि ।
न तदा वापयेत् किञ्चित् ब्रह्मक्षत्रं च पीडयेत् ॥12॥ आषाढ़ी पूर्णिमा को यदि दक्षिण दिशा का वायु चले तो उस समय बोने का कार्य नहीं करना चाहिए। यह वायु ब्राह्मण और क्षत्रिय के लिए पीड़ाकारक होता है॥12॥
धनधान्यं ना० विक्रयं बलवन्तं च संश्रयेत् ।
दुभिक्ष मरणं व्याधिस्त्रास मासं प्रवर्तते ॥13॥ उक्त प्रकार की वायु चलने पर धन-धान्य का विक्रय नहीं करना चाहिए एवं बलवान् प्रशासक का आश्रय ग्रहण करना चाहिए; क्योंकि एक मास में ही दुर्भिक्ष, मरण, व्याधि और त्रास उपस्थित होने लगता ।।13।।
1. मासे मु. A. व्यास मु. C. 1 2. सोदकं मु. C. । 3. शेषो मु० A. शेषो मु० B. D. I 4. ज्ञेयो मु० A. जे यौ मु० B. D. I 5. ज्ञ यो मु. C. । 6. -मासो मु० C. I 7. सोदको मु० C.। 8. पूर्वाह णे प्रहरे यत्र पश्चिमेन च वाति चेत् म C.9. यदा मु० । 10. ते मु. A.। 11. विज्ञेयं मु A. 12. डामरं मु० C.। 13. तश्कराच्च महद्भयम् म०।