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नवमोऽध्यायः
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यदि वायु स्निग्ध हो और प्रदक्षिणा करता हुआ अनुलोमरूप से बहे—उसी दिशा की ओर चले जिधर प्रयाण हो रहा है, तो नगरवासियों की विजय होती है और सुभिक्ष की सूचना मिलती है ।।46।।
दशाहं द्वादशाहं वा पापवातो यदा भवेत्।
अनबन्धं तदा विन्द्याद् राजमत्यु जनक्षयम् ॥47॥ यदि अशुभ वायु दस दिन या बारह दिन तक लगातार चले तो उससे सेनादिक का बन्धन, राजा की मृत्यु और मनुष्यों का क्षय होता है, ऐसा समझना चाहिए ।।470
यदाभ्रवजितो वाति वायुस्तूर्णमकालजः।
पांशभस्मसमाकीर्णः सस्यघातो भयावहः ॥48॥ जब अकाल में मेघरहित उत्पात वायु धूलि और भस्म से भरा हुआ चलता है, तब वह शस्त्रघातक एवं महाभयंकर होता है ।।48।।
सविद्युत्सरजो वायुरूर्ध्वगो वायुभिः सह।
प्रवाति पक्षिशब्देन क्रूरेण स भयावहः ।।49॥ यदि बिजली और धूल से युक्त वायु अन्य वायुओं के साथ ऊर्ध्वगामी हो और क्रूरपक्षी के समान शब्द करता हुआ चले तो वह भयंकर होता है ।।4।।
प्रवान्ति सर्वतो वाता यदा तूर्णं मुहर्मुहः ।
यतो यतोऽभिगच्छन्ति तत्र देशं निहन्ति ते॥50॥ यदि पवन सब ओर से बार-बार शीघ्र गति से चले, तो वह जिस देश की ओर गमन करता है, उस देश को हानि पहुंचाता है ।। 50॥
अनुलोमो यदाऽनीके सुगन्धो वाति मारुतः ।
अयत्नतस्ततो राजा जयमाप्नोति सर्वदा ॥51॥ यदि राजा की सेना में सुगन्धित अनुलोम-प्रयाण की दिशा में प्रगतिशील पवन चले तो बिना यत्न के ही राजा सदा विजय को प्राप्त करता है ।।51॥
प्रतिलोमो यदाऽनीके दुर्गन्धो वाति मारुतः।
तदा यत्नेन साध्यन्ते वीरकोतिसुलब्धयः॥52॥ यदि राजा की सेना में दुर्गन्धित प्रतिलोम-प्रयाण की दिशा से विपरीत
1. मद्रित प्रति में श्लोकों का व्यतिक्रम है । आधा श्लोक पूर्व के श्लोक में है आधा उत्तर उत्तर के श्लोक में। 2, आयातश्च ततो मु० ।