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भद्रबाहुसंहिता
समय-समय पर पतित होनेवाली उल्काओं के शुभाशुभत्व का विचार किया है। वराहमिहिर के मतानुसार पुष्य, मघा, तीनों उत्तरा इन नक्षत्रों में गुरुवार की सन्ध्या या इस दिन की मध्य रात्रि में चने के खेत पर उल्कापात हो तो आगामी वर्ष की कृषि के लिए शुभदायक है। ज्येष्ठ महीने की पूर्णमासी के दिन रात को होनेवाले उल्कापात से आगामी वर्ष के शुभाशुभ फल को ज्ञात करना चाहिए । इस दिन अश्विनी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, पुनर्वसु, आश्लेषा, पूर्वाफाल्गनी और ज्येष्ठा नक्षत्र को प्रताड़ित करता हुआ उल्कापात हो तो वह फसल के लिए खराब होता है । यह उल्कापात कृषि के लिए अनिष्ट का सूचक है। शुक्रवार को अनुराधा नक्षत्र में मध्यरात्रि में प्रकाशमान उल्कापात हो तो कृषि के लिए उत्तम होता है। इस प्रकार के उल्कापात द्वारा श्रेष्ठ फसल की सूचना समझनी चाहिए। श्रवण नक्षत्र का स्पर्श करता हुआ उल्कापात सोमवार की मध्यरात्रि में हो तो गेह और धान की फसल उत्तम होती है । श्रवण नक्षत्र में मंगलवार को उल्कापात हो तो गन्ना अच्छा उत्पन्न होता है किन्तु चने की फसल में रोग लगता है। सोमवार, गुरुवार और शुक्रवार को मध्यरात्रि में कड़क के साथ उल्कापात हो तथा इस उल्का का आकार ध्वजा के समान चौकोर हो तो आगामी वर्ष में कृषि अच्छी होती है, विशेषत: चावल और गेहूं की फसल उत्तम होती है। ज्येष्ठ मास की शुक्लपक्ष की एकादशी, द्वादशी और त्रयोदशी को पश्चिम दिशा की ओर उल्कापात हो तो फसल के लिए अशुभ समझना चाहिए । यहाँ इतनी विशेषता है कि उल्का का आकार त्रिकोण होने से यह फल यथार्थ घटित होता है। यदि इन दिनों का उल्कापात दण्डे के समान हो तो आरम्भ में सूखा पश्चात् समयानुकूल वर्षा होती है। दक्षिण दिशा में अनिष्ट फल घटता है। शुक्लपक्ष की चतुर्दशी की समाप्ति और पूर्णिमा के आरम्भ काल में उल्कापात हो तो आगामी वर्ष के लिए साधारणतः अनिष्ट होता है। पूर्णिमाविद्ध प्रतिपदा में उल्कापात हो तो फसल कई गुनी अधिक होती है । किन्तु पशुओं में एक प्रकार का रोग फैलता है जिससे पशुओं की हानि होती है।
आषाढ़ महीने के आरम्भ में निरभ्र आकाश में काली और लाल रंग की उल्काएं पतित होती हुई दिखलाई पड़ें तो आगामी तथा वर्तमान दोनों वर्ष में कृषि अच्छी नहीं होती। वर्षा भी समय पर नहीं होती है। अतिवृष्टि और अनावृष्टि का योग रहता है। आषाढ़ कृष्ण प्रतिपदा शनिवार और मंगलवार को हो और इस दिन गोलाकार काले रंग की उल्काएँ टूटती हुई दिखलाई पड़ें तो महान् भय होता है और कृषि अच्छी नहीं होती। इन दिनों में मध्यरात्रि के बाद श्वेत रंग की उल्काएँ पतित होती हुई दिखलाई पड़ें तो फसल बहुत अच्छी होती है। यदि इन पतित होनेवाली उल्काओं का आकार मगर और सिंह के समान हो तथा