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भद्रबाहुसंहिता यदि सूर्य सन्ध्या में तीन मंडल अथवा पाँच मंडल से घिरा हुआ दिखलाई दे तो महावर्षा का होना संभव होता है ॥18॥
द्योतयन्ती दिशा सर्वा यदा सन्ध्या प्रदृश्यते।
महामेघांस्तदा विन्द्यात् भद्रबाहुवचो यथा ॥19॥ सब दिशाओं में प्रकाशमान झलझलाहट युवत सन्ध्या दिखलाई दे तो भारी वर्षा होती है, ऐसा भद्रबाहु का वचन है ।।19।।
सरस्तडागप्रतिमाकूपकुम्भनिभा च या।
यदा पश्यति- सुस्निग्धा सा सन्ध्या वर्षदा स्मृता ॥20॥ सरोवर, तालाब, प्रतिमा, कूप और कुम्भ सदृश स्निग्ध सन्ध्या यदि दिखलाई दे तो वर्षा होगी, ऐसा जानना चाहिए ॥20॥
धूम्रवर्णा बहुच्छिद्रा खण्डपापसमा यदा।
या सन्ध्या दृश्यते नित्यं सा तु राज्ञो भयंकरा ॥21॥ धूम्र वर्णवाली, छिद्रयुक्त, खण्डरूप सन्ध्या यदि नित्य दिखाई दे तो वह राजा को भयकारक है ।।210
द्विपदाश्चतुष्पदाः ऋ राः पक्षिणश्च भयंकराः ।
सन्ध्यायां यदि दृश्यन्ते भयमाख्यान्त्युपस्थितम् ॥22॥ क्रूर स्वभाव वाले द्विपद, चतुष्पद और पक्षीगण के सदृश बादल यदि सन्ध्या काल में दिखलाई दें तो भय उपस्थित होता है ।। 22।।
अनावृष्टिर्भयं रोगं दुभिक्ष राजविद्रवम् ।
रूक्षायां विकृतायां च सन्ध्यायामभिनिदिशेत् ॥23॥ सन्ध्या में बादल रूक्ष और विकृतिरूप दिखाई दें तो अनावृष्टि, भय, रोग, दुर्भिक्ष और राजा का उपद्रव होता है ।।23।।
विशतिर्योजनानि स्युविधुभाति च सुप्रभा। ततोऽधिकं तु स्तनितं' अभ्र यत्रैव दृश्यते ॥24॥
1. महामेघ मु०। 2. दृश्यति मु०। 3. शिवा मु० C.। 4. पक्षिणस्तु मु० । 5. सन्ध्यायां विनिदिशेत्, मु० । 6. स्वनितम् मु० ।
विशेष नोट-मुद्रित प्रति में श्लोक-संख्या 22, 23 में व्यक्तिकम मिलता है।