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सप्तमोऽध्यायः
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की सन्ध्या का भी शभाशुभ फल अवगत करना चाहिए ।।12।।
स्निग्धवर्णमती सन्ध्या वर्षदा सर्वशो भवेत्।
'सर्वा वीथिगता वाऽपि सुनक्षत्रा विशेषतः ॥13॥ स्निग्ध वर्ण की सन्ध्या वर्षा देने वाली होती है; वीथियों में प्राप्त और विशेष कर शुभ नक्षत्रों वाली सन्ध्या वर्षा को करती है ।13।।
पूर्वरात्रपरिवेषाः सविद्युत्परिखायुता।
सरश्मी सर्वतः सन्ध्या सद्यो वर्ष प्रयच्छति ॥14॥ पूर्व रात्रि-पिछली बीती हुई रात्रि को परिवेष हो और परिखायुक्त बिजली हो तथा सब ओर रश्मि सहित सन्ध्या हो तो तत्काल वर्षा होती है ।।14।।
प्रतिसूर्यागमस्तत्र 'शत्रचापरजस्तथा।
सन्ध्यायां याद दृश्यन्ते सद्यो वर्ष प्रयच्छति ॥15॥ प्रतिसूर्य का आगमन हो, वहाँ पर इन्द्रधनुष रजोयुक्त सन्ध्या में दिखलाई पड़े तो तत्काल वर्षा होती है ।।15।।
सन्ध्यायामेकरश्मिस्तु यदा सजति भास्करः ।
उदितोऽस्तमितो चापि विन्द्याद् वर्षमुपस्थितम् ॥16॥ सन्ध्या में सूर्य उदय या अस्त के समय में एक रश्मि वाला दिखलाई पड़े तो तत्काल वर्षा होती है ।।16।।
आदित्यपरिवेषस्तु सन्ध्यायां यदि दृश्यते।
वर्ष महद् विजानीयाद् भयं वाऽथ प्रवर्षणे॥17॥ सन्ध्या में सूर्य के परिवेष दिखलाई दें तो भारी वर्षा होती है अथवा भय होता है। तात्पर्य यह है कि सन्ध्या काल में सूर्य का परिवेष दिखलाई देना शुभ नहीं माना जाता है। इसका फलादेश अच्छा नहीं होता । वर्षा भी होती है तो अधिक होती है जिससे मनुष्य और पशुओं को कष्ट ही होता है ।17।।
त्रिमण्डलपरिक्षिप्तो यदि वा पंचमण्डल:। सन्ध्यायां दृश्यते सूर्यो महावर्षस्य सम्भवः ॥18॥
___ 1. सवं मु. C.। 2. नक्षत्राणि मु० । 3. सर्व रात्रि मु० । 4. सपरिवेपा गु• C. I 5. सविधुता मु. A. । 6. सुरश्मि मु C. । 7. सर्वशः मु० । 8. सर्वसन्ध्यायां मु. C. । 9. सध्रुवं मु । 10.-11. चा वर्षणे पुनः मु० A. । 12. अथवा मु० ।