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भद्रबाहुसंहिता आकृति के अनुसार फलादेश अवगत करना चाहिए । आषाढ़ मास में कृष्ण प्रतिपदा की सन्ध्या विशेष महत्वपूर्ण हैं । इस दिन दोनों ही सन्ध्या स्वच्छ, निरभ्र और सौम्य दिखलाई पड़ें तो सुभिक्ष नियमत. होता है । नागरिकों में शान्ति और सुख व्याप्त होता है । यदि इस दिन की किसी भी सन्ध्या में इन्द्रधनुष दिखलाई पड़े तो आपसी उपद्रवों की सूचना समझनी चाहिए। आपाढ़ मास की अवशेष तिथियों की सन्ध्या का फल पूर्वोक्त प्रकार से ही समझना चाहिए । स्वच्छ, सौम्य और श्वेत, रक्त, पीत और नील वर्ण की सन्ध्या अच्छा फल सूचित करती है और मलिन, विकृत आकृति तथा छिद्र युक्त सन्ध्या अनिष्ट फल सूचित करती है।
अष्टमोऽध्यायः
अतः परं प्रवक्ष्यामि मेघनामपि लक्षणम् ।
प्रशस्तमप्रशस्तं च यथावदनुपूर्वशः ॥1॥ सन्ध्या का लक्षण और फल निरूपण करने के उपरान्त अब मेघों के लक्षण और फल का प्रतिपादन करते हैं । ये दो प्रकार के होते हैं—प्रशस्त-शुभ और अप्रशस्त-अशुभ ॥1॥
यदांजनिभो मेघः' शान्तायां दिशि दृश्यते।
स्निग्धो मन्तगतिश्चापि तदा विन्द्याज्जलं शुभम् ॥2॥ यदि अंजन के समान गहरे काले मेघ पश्चिम दिशा में दिखलाई पड़ें और ये चिकने तथा मन्द गति वाले हों तो भारी जल-वृष्टि होती है ।।2।।
पीतपुष्पनिमो यस्तु यदा मेघ: समुत्थितः।
शान्तायां यदि दृश्येत स्निग्धो वर्ष तदुच्यते ॥3॥ पीले पुष्प के समान स्निग्ध मेघ पश्चिम दिशा में स्थित हों तो जल की वृष्टि तत्काल कराते हैं । इस प्रकार के मेघ वर्षा के कारक माने जाते हैं ।।3।।
1. देवः म । 2. तीन और चार संख्या वाले श्लोक मुद्रित प्रति में नहीं है।