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भद्रबाहुसंहिता चमके तो जल-वृष्टि नहीं होती ।।13।।
रक्तारक्तेषु चाभ्रषु हरिताहरितेषु च।
नीलानीलेषु वा स्निग्धा वर्षन्तेऽनिष्टयोनिषु ॥14॥ रक्त-अरक्त, हरित-अहरित और नील-अनील बादलों में यदि स्निग्धा बिजली चमकती है, तो उक्त प्रकार के बादलों के अनिष्टसूचक होने पर भी जल की वर्षा अवश्य होती है ॥4॥
अथ नीलाश्च पीताश्च रक्ताः श्वेताश्च विद्युतः ।
एतां श्वेतां पतत्यूर्व विधुदुदकसंप्लवम् ॥15॥ अब बिजली के वर्णों का निरूपण करते हैं—नील, पीत, रक्त और श्वेत वर्ण की बिजलियों में से श्वेत रंग की बिजली ऊपर गिरे तो पृथ्वी पर जल ही जल बरसता है—पृथ्वी जल से प्लावित हो जाती है ।।15।।
वैश्वानरपथे विद्युत् श्वेता रूक्षा चरेद् यतः ।
विन्यात् तदाऽशनिवर्ष रक्तायामग्नितो भयम् ॥16॥ वैश्वानर पथ अर्थात् अग्निकोण में उत्पन्न हुई श्वेता और रूक्षा नाम की बिजलियाँ विद्य त् कही जाती हैं । ये अशनि वृष्टि करती हैं । रक्तवर्ण की बिजली अग्नि का भय करती हैं ।।16।।
यदा श्वेताऽभ्रवृक्षस्य विद्युच्छिरसि संचरेत् ।
अथ वा गृहयोर्मध्ये वातवर्ष सृजेन्महत् ॥17॥ यदि श्वेत रंग की बिजली वृक्ष के ऊपर गिरे अथवा दो गृहों के मध्य से होकर गिरे तो तेज वायु सहित जल की वर्षा होती है ।।17।
अथ चन्द्राद विनिष्क्रम्य विद्युन्मंडलसंस्थिता।
श्वेताऽऽभा प्रविशेदर्क विन्द्यादुदकसंप्लवम् ॥18॥ यदि चन्द्रमण्डल से निकलकर श्वेत मेघ युक्त बिजली सूर्यमण्डल में प्रवेश करे तो उसे अधिक वर्षासूचिका समझनी चाहिए ॥18॥
अथ सूर्याद विनिष्क्रम्य रक्ता समलिना भवेत् ।
प्रविश्य सोमं वा तस्य तत्र वृष्टिर्भयंकरा ॥19॥ यदि सूर्यमण्डल से निकलकर रक्त वर्ण की मलिन विद्युत् चन्द्रमण्डल में प्रवेश
1. तदा मु० C.। 2. ससलिला मा० 1 3. नश्येत् मृC.। 4. सा तु म
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