________________
पंचमोऽध्यायः
63
दिखलाई पड़े तो सभी प्रकार की वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि होती है । विशेप रूप से जूट, सीमेन्ट, कागज एवं विदेश से आनेवाली वस्तुएँ अधिक महंगी होती हैं। चीनी, गुड़, शहद आदि मिष्ट पदार्थों के मूल्य गिरते हैं। यदि उक्त प्रकार का सूर्य-परिवेष दिन भर रह जाय तो इसका फल व्यापार के लिए अत्यन्त लाभप्रद है। वस्तुओं के मूल्य चौगुने बढ़ जाते हैं और व्यापारियों को अपरिमित लाभ होता है। बाजार में यह स्थिति अधिक से अधिक पाँच महीनों तक रह सकती है। आरम्भ के तीन माह महँगाई के और अवशेष दो महीने साधारण महंगाई के होते हैं।
पंचमोऽध्यायः
अथातः संप्रवक्ष्यामि विद्युतां नामविस्तरम् ।
प्रशस्ता वाऽप्रशस्ता च याथवदनुपूर्वतः ॥1॥ अब पूर्वाचार्यानुसार विद्युत्-बिजली का विस्तार से निरूपण करते हैं। विद्य त् (बिजली) दो प्रकार की होती है-प्रशस्त और अप्रशस्त ॥1॥
सौदामिनी च पूर्वा च कुसुमोत्पलनिभा शुभा। निरभ्रा मिश्रकेशी च क्षिप्रगा चाश निस्तथा ॥2॥ एतासां नामभिर्वर्ष ज्ञेयं कर्मनिरुक्तिता।
भूयो व्यासेन वक्ष्यामि प्राणिनां पुण्यपापजाम् ॥3॥ सौदामिनी और पूर्वा बिजली यदि कमल के पुष्प के समान हो तो वह शुभअशुभ फल देने वाली होती है । वह बिजली निरभ्रा-बादलों से रहित, देवांगना के समान मिश्रकेशी, शीघ्र गमन करने वाली और वज्र के समान हो तो अशनि नाम से कही जाती है। वर्षा का कारण है, अतः यह वर्ष भी कही जाती है। इस बिजली के नाम इसकी क्रिया निरुक्ति से अवगत कर लेना चाहिए। अब पुनः
1. अनुपूर्वशः मु०। 2. कुम्भहेमोत्पला, मु० । 3. कर्मभिरु क्तितः मु० । 4. पुण्यशालिनाम् मु०।