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तृतीयोऽध्यायः
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लाभ, किसी स्वजन को कष्ट, सन्तान की वृद्धि एवं कुटुम्बियों द्वारा यश की प्राप्ति होती है, शुक्रवार को उल्कापात उस आकार का दिखलाई पड़े तो राज-सम्मान, यश, धन एवं मधुर पदार्थ भोजन के लिए प्राप्त होते हैं तथा शनि की रात्रि में उस प्रकार के आकार का उल्कापात दिखलाई पड़े तो आर्थिक संकट, धन को क्षति तथा आत्मीयों में भी संवर्ष होता है। रविवार की रात्रि में इन्द्रधनुष के आकार की उल्का का पतन देखना अनिष्टकारक बताया गया है । रोहिणी, तीनों उत्तरा -उत्तराषाढ़ा, उत्तराफाल्गुनी और उत्तराभादपदा, चित्रा, अनुराधा और रेवती नक्षत्र में इन्हीं नक्षत्रों में उत्पन्न हुए व्यक्तियों को उल्कापात दिखलाई पड़े तो वैयक्तिक दृष्टि से अभ्युदय सूचक और इन नक्षत्रों से भिन्न नक्षत्रों में जन्मे व्यक्तियों को उल्कापात दिखलाई पड़े तो कष्ट सूचक होता है। तीनों पूर्वापूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा और पूर्वाभाद्रपदा, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा और मूलनक्षत्र में जन्मे व्यक्तियों को इन्हीं नक्षत्रों में शब्द करता हुआ उल्कापात दिखलाई पड़े तो मृत्यु सूचक और भिन्न नक्षत्रों में जन्मे व्यक्तियों को इन्हीं नक्षत्रों में उल्कापात सशब्द दिखलाई पड़े तो किसी आत्मीय की मृत्यु और शब्द रहित दिखलाई पड़े तो आरोग्यलाभ प्राप्त होता है । विपरीत आकारवाली उल्का दिखलाई पड़ेजहाँ से निकली हो, पुनः उसी स्थान की ओर गमन करती हुई दिखलाई पड़े तो भयकारक, विपत्तिसूचक तथा किसी भयंकर रोग की सूचक अवगत करना चाहिए। पवन की प्रतिकूल दिशा में उल्का कुटिल भाव से गमन करती हुई दिखलाई पड़े तो दर्शक की पत्नी को भय, रोग और विपत्ति की सूचक समझना चाहिए।
व्यापारिक फल- श्याम और असितवर्ण की उल्का रविवार की रात्रि के पूर्वार्ध में दिखलाई पड़े तो काले रंग की वस्तुओं की महँगाई, पीतवर्ण की उल्का इसी रात्रि में दिखलाई पड़े तो गेहूँ और चने के व्यापार में अधिक घटा-बढ़ी, श्वेतवर्ण की उल्का इसी रात्रि में दिखलाई पड़े तो चाँदी के भाव में गिरावट और लालवर्ण की उल्का दिखलाई पड़े तो सुवर्ण के व्यापार में गिरावट रहती है। मंगलवार, शनिवार और रविवार की रात्रि में सट्टेबाज व्यक्ति पूर्व दिशा में गिरती हुई उल्का देखें तो उन्हें माल बेचने में लाभ होता है, बाजार का भाव गिरता है और खरीदनेवाले की हानि होती है। यदि इन्हीं रात्रियों में पश्चिम दिशा की ओर से गिरती हुई उल्का उन्हें दिखलाई पड़े तो भाव कुछ ऊंचे उठते हैं और सट्टवालों को खरीदने में लाभ होता है। दक्षिण से उतर की ओर गमन करती हुई उल्का दिखलाई पड़े ती मोती, हीरा, पन्ना, माणिक्य आदि के व्यापार में लाभ होता है। इन रत्नों के मूल्य में आठ महीने तक घटा-बढ़ी होती रहती है । जवाहरात का बाजार स्थिर नहीं रहता है । यदि सूर्यास्त या चन्द्रास्त काल में