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तृतीयोऽध्यायः
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अथ यद्युभयां सेनामेकैकं प्रतिलोमतः ।
उल्का तूर्ण प्रपद्येत उभयत्र भयं भवेत् ॥48॥ यदि दोनों सेनाओं की ओर एक-एक सेना में प्रतिलोम-अपमव्य मार्ग से उल्का शीघ्रता से गिरे तो दोनों सेनाओं को भय होता है ।।48।।
येषां सेनासु निपतेदुल्का नीलमहाप्रभा।
सेनापतिवधस्तेषामचिरात् सम्प्रजायते ॥49॥ __ नीले रंग की महाप्रभावशाली उल्का जिस सेना में गिरे उस सेना का सेनापति शीघ्र ही मरण को प्राप्त होता है ।।49।।
उल्कास्त लोहिता: सक्ष्मा: पतन्त्य: पतनां प्रति।
यस्य राज्ञः प्रपद्यन्तं कुमारो हन्ति तं नृपम् ॥50॥ लोहित वर्ण की सूक्ष्म उल्का जिस राजा की सेना के प्रति गिरे, उस सेना के राजा को राजकुमार मारता है ।।50॥
उल्कास्तु बहवः पीता: पतन्त्य: पृतनां प्रति।
पृतनां व्याधितां प्राहुस्तस्मिन्नुत्पातदर्शने 151॥ पीतवर्ण की बहुत उल्काएँ सेना के समक्ष या सेना में गिरें तो इस उत्पात का फल सेना में रोग फैलना है ।। 5 1।।
संघशास्त्राश्नपद्येत (?) उल्का: श्वेता: समन्ततः।
ब्राह्मणेभ्यो भयं घोरं तस्य सैन्यस्य निर्दिशेत् ॥52॥ यदि श्वेत रंग की उल्का सेना में चारों तरफ गिरे तो वह उस सेना को और ब्राह्मणों को घोर भय की सूचना देती है ।। 52।।
उल्का व्यूहेष्वनीकेषु या 'पतेत्तिर्यगागता।
न तदा जायते युद्धं परिघा नाम सा भवेत् ॥53॥ __ बाण या खड्गरूप तिरछी उल्का सेना की व्यूह रचना में गिरे तो कुटिल युद्ध नहीं होता है, इसको परिघा नाम से स्मरण करते हैं - कहते हैं ।। - 3।।
उल्का व्यूहेष्वनीकेषु पृष्ठतोऽपि पतन्ति' याः। क्षयव्ययेन पीड्येरन्नुभयो: सेनयोर्नु पान् ॥54॥
1. उभयं आ० । 2. महत्प्रभा मु० । 3. बहुशास्त्र प्रपद्ये रन् मु० । 4. पतन्ति आ० । 5. च सायका आ० । 6. पृष्ठतः आ० । 7. निपतन्ति आ० । 8. नुपा: आ० ।