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भद्रबाहुसंहिता यदि ऊपर को गमन करती हुई उल्का चन्द्र और सूर्य को विदारण करे तो स्थावर-स्थायी नगरवासियों के लिए विपरीत उत्पातों की सूचना देती है।।421
अस्तं यातमथादित्यं सोममल्का लिखेद यदा।
आगन्तुबध्यते सेना यथा चोशं यथागमम् ॥43॥ सूर्य और चन्द्रमा के अस्त होने पर यदि उल्का दिखलाई दे तो वह आनेवाले यायी की दिशा में आगन्तुक सेना के वध का निर्देश करती है ।।431
उदगच्छेत् सोमम वा यद्युल्का प्रतिलोमत:।
प्रविशेन्नागराणां स्याद् विपर्यास स्तथागते ॥44॥ प्रतिलोम मार्ग से गमन करती हुई उल्का उदय होते हुए सूर्य और चक्र मण्डल में प्रवेश करे तो स्थायी और यायी दोनों के लिए विपरीत फलदायक अर्थात् अशुभ होती है ।।4411
एषवास्तगते. उल्का आगन्तूनां भय भवेत्।
प्रतिलोमा भयं कुर्याद् यथास्तं चन्द्रसूर्ययोः ॥45॥ उपर्युक्त योग में सूर्य-चन्द्र के अस्त समय प्रतिलोम मार्ग से गमन करती हुई सूर्य-चन्द्र के मण्डल में आकर उल्का अस्त हो जाय तो स्थायी और यायी दोनों के लिए भयोत्पादक है ।। 451
उदये भास्करस्योल्का यातोऽग्रतोधिसर्पति ।
सोमास्यापि जयं कुर्यादेषां पुरस्सरावृतिः ॥46॥ यदि उल्का सूर्योदय होते हए सूर्य के आगे और चन्द्र के उदय होते हुए चन्द्रमा के आगे गमन करे तया वाणों की आवृति रूप हो तो उसे जयसूचक समझना चाहिए ।।46।।
सेनामभिनुखी भूत्वा यद्युल्का प्रतिग्रस्यते ।
प्रतिसेनावधं विन्द्यात् तस्मिन्नुत्पातदर्शने ॥47॥ यदि उल्का सेना के सामने होकर गिरती हुई दिखलाई पड़े तो प्रतिसेना (प्रतिद्वन्द्वी सेना) के वध की सूचिका समझनी चाहिए ।।471
1. यथादेशं मु०, निग्रन्थवचनं यथा, मु. C.। 2. तदागते मु० । 3. यथवास्तमने मु. A., एषवास्तमनं मु. C. । 4. यो ऽ ग्रतो ऽ भिसर्पति मु० । 5. परुस रावृत्ति आ० । 6. प्रतिदृश्यते मु० ।