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भद्रबाहुसंहिता
तत्रासोनं महात्मानं ज्ञानविज्ञानसागरम् । तपोयक्तं च श्रेयांसं भद्रबाहं निराश्रयम् ।। द्वादशांगस्य वेत्तारं नैर्ग्रन्थं च महाद्य तिम् । वृत्तं शिप्यः प्रतिष्यश्च निपुणं तत्त्ववेदिनाम् ।। प्रणम्य शिरसाऽच र्यमूचः शिष्यास्तदा गिरम् । सर्वेषु प्रीतमनसो दिव्यज्ञानं बभुत्सवः ।।
(भ० सं० अ० 1 श्लोक 5-7) द्वितीय अध्याय के आरम्भ में बताया गया है कि शिष्यों के प्रश्न के पश्चात् भगवान् भद्रबाहु कहने लगे
ततः प्रोवाच भगवान दिग्वासाः श्रमणोत्तमः । यथावस्थासु विन्यासं द्वादशांगविशारदः ।। भवद्भिर्यद्यहं पृष्टो निमित्त जिनभाषितम् ।
समासव्यासत: सर्व तन्निबोध यथाविधि ।। इस कथन से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इसकी रचना श्रुतकेवली भद्रबाहु ने की होगी । परन्तु ग्रन्थ के आगे के हिस्से को देखने से निराशा होती है। इस ग्रन्थ के अनेक स्थानों पर 'भद्रबाहुवचो यथा' (अ0 3 श्लो० 64; अ० 6 श्लो० 17; अ० 7 श्लो० 19; अ० 9 श्लो० 26; अ० 10 श्लो० 16,45, 53; अ० 11 श्लो० 26, 30; अ० 12 श्लो० 37; अ० 13 श्लो० 74, 100, 178; अ० 14 श्लो० 54, 136; अ० 15 श्लो० 37, 73, 128) लिखा मिलता है। इससे सहज में अनुमान किया जा सकता है कि यह रचना भद्रबाहु के वचनों के आधार पर किसी अन्य विद्वान् ने लिखी है। इस ग्रन्थ के पुष्पिका वाक्यों में 'भद्रबाहुके निमित्ते', 'भद्रबाहसंहितायां', 'भद्रबाहु निमित्तशास्त्रे' लिखा मिलता है । ग्रन्थ की उत्थानिका में जो श्लोक आये हैं, उनसे निम्न प्रकाश पढ़ता है
1. इस ग्रन्थ की रचना मगध देश के राजगह नामक नगर के निकटवर्ती पाण्डुगिरि पर राजा सेनजित् के राज्यकाल में हुई होगी।
2. यह ग्रन्थ सर्वज्ञ कथित वचनों के आधार पर भद्रबाहु स्वामी ने अपने दिव्य ज्ञान के बल से लिखा। ___3. राजा, भिक्षु, श्रावक एवं जन-साधारण के लिए इस ग्रन्थ की रचना की गयी।
4. इस ग्रन्थ के रचयिता भद्रबाह स्वामी दिगम्बर आम्नाय के अनुयायी थे।
जिस प्रकार मनुस्मृति की रचना स्वयं मनु ने नहीं की है, बल्कि मनु के वचनों के आधार पर की गयी है। फिर भी वह मनु के नाम से प्रसिद्ध है तथा मनु के ही विचारों का प्रतिनिधित्व करती है। उस रचना में भी मनु के वचनों का