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भद्रबाहुसंहिता
देश का स्पन्दन होने से अर्थलाभ और मध्य देश के फड़कने से उद्वेग और मृत्यु होती है। अपांग देश के फड़कने से स्त्रीलाभ, कर्ण के फड़कने से प्रियसंवाद, नासिका के फड़कने से प्रणय, अधर ओप्ठ के फड़कने से अभीष्ट विषयलाभ, कण्ठ देश के फड़कने से सुख, बाहु के फड़कने से मित्रस्नेह, स्कन्धप्रदेश के फड़कने से सुख, हाथ के फड़कने से धनलाभ, पीठ के फड़कने से पराजय, और वक्षस्थल के फड़कने से जयलाभ होता है । स्त्रियों की कुक्षि और स्तन फड़कने से सन्तानलाभ, नाभि फड़कने से कप्ट और स्थान-च्युति फल होता है। स्त्री का वामांग और पुरुष का दक्षिणांग ही फल निरूपण के लिए ग्रहण किया जाता है।
पाक-सूर्यादि ग्रहों का फल कितने समय में मिलता है. इसका निरूपण करना ही इस अध्याय का विषय है। ___ ज्योतिष-सूर्यादि ग्रहों के गमन, संचार आदि के द्वारा फल का निरूपण किया जाता है। इसमें प्रधानतः ग्रह, नक्षत्र, धूमकेतु आदि ज्योति पदार्थों का स्वरूप, संचार, परिभ्रमणकाल, ग्रहण और स्थिति प्रभृति समस्त घटनाओं का निरूपण एवं ग्रह, नक्षत्रों की गति, स्थिति और संचारानुसार शुभाशुभ फलों का कथन किया जाता है । कतिपय मनीषियों का अभिमत है कि नभोमंडल में स्थित ज्योतिःसम्बन्धी विविध विषयक विद्या को ज्योतिर्विद्या कहते हैं, जिस शास्त्र में इस विद्या का सांगोपांग वर्णन रहता है, वह ज्योतिषशास्त्र कहलाता है।
वास्तु–वास स्थान को वास्तु कहा जाता है। वास करने के पहले वास्तु का शुभाशुभ स्थिर करके वास करना होता है। लक्षणादि द्वारा इस बात का निर्णय करना होता है कि कौन वास्तु शुभकारक है और कौन अशुभकारक । इस प्रकरण में गृहों की लम्बाई, चौड़ाई तथा प्रकार आदि का निरूपण किया जाता है ।
दिव्येन्द्र संपदा--आकाश की दिव्य विभूति द्वारा फलादेश का वर्णन करना ही इस अध्याय के अन्तर्गत है।
लक्षण -इस विषय में दीपक, दन्त, काष्ठ, श्वान, गो, कुक्कुट, कूर्म, छाग, अश्व, गज, पुरुष, स्त्री, चमर, छत्र, प्रतिमा, शय्यासन, प्रासाद प्रभति के स्वरूप गण आदि का विवेचन किया जाता है। स्त्री और पुरुष के लक्षणों के अन्तर्गत सामुद्रिक शास्त्र भी आ जाता है। अंगोपांगों की बनावट एवं आकृति द्वारा भी शुभाशुभ लक्षणों का निरूपण इस अध्याय में किया जाता है।
चिह्न विभिन्न प्रकार के शरीर-बाह्य एवं शरीरान्तर्गत चिह्नों द्वारा शुभाशुभ फल का निर्णय करना चिह्न के अन्तर्गत आता है । इसमें तिल, मस्सा आदि चिह्नों का विचार विशेष रूप से होता है।
लग्न-जिस समय में क्रान्तिवृत्त का जो प्रदेश स्थान क्षितिज वृत्त में लगता है, वही लग्न कहलाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि दिन का