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भद्रबाहुसंहिता
( 11 ) किंस्तुघ्न । इन करणों में पहले के 7 करण चरसंज्ञक और अन्तिम 4
करण स्थिर संज्ञक हैं ।
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करणों के स्वामी- वव का इन्द्र, बालब का ब्रह्मा, कौलव का सूर्य, तैतिल का सूर्य, गर की पृथ्वी, वणिज की लक्ष्मी, विष्टि का यन, शकुनि का कलि, चतुष्पाद का रुद्र, नाग का सर्प एवं किंस्तुध्न का वायु है । विष्टि करण का नाम भद्रा है, प्रत्येक पञ्चांग में भद्रा के आरम्भ और अन्त का समय दिया रहता है । निमित्त - जिन लक्षणों को देखकर भूत और भविष्य में घटित हुईं और होने वाली घटनाओं का निरूपण किया जाता है, उन्हें निमित्त कहते हैं । निमित्त के आठ भेद हैं- ( 1 ) व्यंजन - तिल, मस्सा, चट्टा आदि को देखकर शुभाशुभ का निरूपण करना व्यंजन निमित्तज्ञान है । ( 2 ) मस्तक, हाथ, पाँव आदि अंगों को देखकर शुभाशुभ कहना अंग निमित्तज्ञान है । ( 3 ) चेतन और अचेतन के शब्द सुनकर शुभाशुभ का वर्णन करना स्वर निमित्तज्ञान है । ( 4 ) पृथ्वी की चिकनाई और रूखेपन को देखकर फलादेश निरूपण करना भौम निमित्तज्ञान है । (5) वस्त्र, शस्त्र, आसन, छत्रादि को छिदा हुआ देखकर शुभाशुभ फल कहना छिन्न निमित्तज्ञान है । ( 6 ) ग्रह, नक्षत्रों के उदयास्त द्वारा फल निरूपण करना अन्तरिक्ष निमित्तज्ञान है | ( 7 ) स्वस्तिक, कलश, शंख, चक्र आदि चिह्नों द्वारा एवं हस्तरेखा की परीक्षा कर फलादेश बतलाना लक्षण निमित्तज्ञान है । ( 8 ) स्वप्न द्वारा शुभाशुभ फल कहना स्वप्न निमित्तज्ञान है। ऋषिपुत्र निमित्तशास्त्र में निमित्तों के तीन ही भेद किये गये हैं
जो दिट्ठ भुविरसण्ण जे दिट्ठा कुहमेण कत्ताणं । सदसंकुलेन दिट्ठा वउसट्ठिय ऐण जाणधिया ||
अर्थात् - पृथ्वी पर दिखलाई देने वाले निमित्त, आकाश में दिखलाई देने वाले निमित्त और शब्दश्रवण द्वारा सूचित होने वाले निमित्त, इस प्रकार निमित्त तीन भेद हैं ।
शकुन – जिससे शुभाशुभ का ज्ञान किया जाय, वह शकुन है । वसन्तराज शाकुन में बताया गया है कि जिन चिह्नों के देखने से शुभाशुभ जाना जाय, उन्हें शकुन कहते हैं । जिस निमित्त द्वारा शुभ विषय जाना जाय उसे शुभ शकुन और जिसके द्वारा अशुभ जाना जाय उसे अशुभ शकुन कहते हैं । दधि, घृत, दूर्वा, आतप, तण्डुल, पूर्णकुम्भ, सिद्धान्त, श्वेत सर्षप, चन्दन, शंख, मृत्तिका, गोरोचन, देवमूर्ति, वीणा, फल, पुष्प, अलंकार, अस्त्र, ताम्बूल, मान, आसन, ध्वज, छत्र, व्यञ्जन, वस्त्र, रत्न, सुवर्ण, पद्म, भृंगार, प्रज्वलित वह्नि, हस्ती, छाग, कुश, रूप्य, ताम्र, वंग, औषध, पल्लव इन वस्तुओं की गणना शुभ शकुनों में की गई है । यात्रा के समय इनका दर्शन और स्पर्शन शुभ माना गया है । यात्राकाल