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भद्रबाहुसंहिता
भद्रबाहु संहितानी उक्त प्रति पण एज रीते कोई प्राचीन ताडपत्रनी प्रतिलिपि रूपे उतारेली छे, कारण के, ए प्रतिमा ठेकठेकाणे एवी केटलीय पंक्तिओ दृष्टिगोचर थाय छे, जेमालहियाए पोताने मलली आदर्श प्रतिमा उपलब्ध यता खंडित के त्रुटित शब्दो अने वाक्यो माटे, पाछलथी कोई तेनी पूत्ति करी शके ते सारू..'आ जातनी अक्षरविहीन मात्र शिरोरेखाओ दोरी मुकेली छे, एनो अर्थ ए छे के एप्रतिना लहियाने जे ताडपत्रीय प्रति मलीहती ते विशेष जीर्ण थऐली होवो जोईए अने तेमाँ ते ते स्थलना लखाणना अक्षरो, ताडपत्रोनो किनारो खरी पडवायी जता रहेलाके भंसाई गएलाहोवा जोईए-ए उपरथी एवं अनुमान सहेजे करीशकाय के ते जूनी ताडपत्रीय प्रति पण ठीक-ठीक अवस्थाए पहोंची गएली होवी जोईए, आ ते जिनभद्र सूरिना समयमां जो ए प्रति 300-400 वर्षों जेटली जूनी होय - अने ते होवानो विशेष संभव छेज-तो सहेजे ते मूलं प्रति विक्रमना 11मा 12मा संका जेटली जूनी होई शके। पाटण अने जेसलमेरना जना भंडारोमा आवी जातनो जीर्ण-शीर्ण थएली ताडपत्रीय प्रतियो तेमज तेमना उपरथो उतारवामां आवेली कागलनी सेंकडो प्रतियो म्हारा जोवामां आवोछ ।" ___ इस लम्बे कथन से आप ने यह निष्कर्ष निकाला है कि भद्रबाहुसंहिता का रचनाकाल 11-12 शताब्दी से अर्वाचीन नहीं है। यह ग्रन्थ इससे प्राचीन ही होगा। मुनिजी का अनुमान है कि इस ग्रन्थ का प्रचार जैन साधुओं और गृहस्थों में अधिक रहा है, इसी कारण इसके पाठान्तर अधिक मिलते हैं। इसके रचयिता कोई प्राचीन जैनाचार्य हैं, जो भद्रबाहु से भिन्न हैं । मूल ग्रन्थ प्राकृत भाषा में लिखा गया था, पर किसी कारण वश आज यह ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है । यत्र-तत्र प्राप्त मौखिक या लिपिबद्ध रूप में प्राचीन गाथाओं को लेकर उनका संस्कृत रूपान्तर कर दिया है। जिन विषयों के प्राचीन उद्धरण नहीं मिल सके, उन्हें वाराही संहिता. मुहर्न चिन्तामणि आदि ग्रन्थों से लेकर किसी भट्टारक या यति ने संकलित कर दिया।
श्री मुख्तार माहब, मुनिश्री जिनविजय जी तथा प्रो० अमृतलाल सावचंद गोगणी आदि महानुभावों के कथनों पर विचार करने तथा उपलब्ध ग्रंथ के अवलोकन से हमारा अपना मत यह है कि इस ग्रन्थ का विषय, रचना शैली और वर्णनक्रम वाराही संहिता से प्राचीन है। उल्का प्रकरण में वाराहीसंहिता की अपेक्षा नवीनता है और यह नवीनता ही प्राचीनता का संकेत करती है। अतः इसका संकलन, कम से कम आरम्भ के 25 अध्यायों का, किसी व्यक्ति ने प्राचीन गाथाओं के आधार पर किया होगा । बहुत संभव है कि भद्रबाहु स्वामी की कोई रचना इस प्रकार की रही होगी, जिसका प्रतिपाद्य विषय निमित्तशास्त्र है । अत. एव मनुस्मृति के समान भद्रबाहु संहिता का संकलन भी किसी भाषा तथा विषय की दृष्टि से अव्युत्पन्न व्यक्ति ने किया है। निमित्तशास्त्र के महाविद्वान् भद्रबाहु