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वृद्धि होती है ।
बाईसवें अध्याय में 21 श्लोक हैं । इस अध्याय में सूर्य की विशेष अवस्थाओं का फलादेश वर्णित है । सूर्य के प्रवास, उदय और चार का फलादेश बतलाया गया है । लाल वर्ण का सूर्य अस्त्र प्रकोप करनेवाला, पीत और लोहित वर्ण का सूर्य व्याधि- मृत्यु देनेवाला और धूम्र वर्ण का सूर्य भुखमरी तथा अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न करनेवाला होता है । सूर्य की उदयकालीन आकृति के अनुसार भारत के विभिन्न प्रदेशों के सुभिक्ष और दुर्भिक्ष का वर्णन किया गया है । स्वर्ण के समान सूर्य का रंग सुखदायी होता है तथा इस प्रकार के सूर्य के दर्शन करने से व्यक्ति को सुख और आनन्द प्राप्त होता है ।
तेईसवें अध्याय में 58 श्लोक हैं । इसमें चन्द्रमा के वर्ण, संस्थान, प्रमाण आदि का प्रतिपादन किया गया है। स्निग्ध, श्वेतवर्ण, विशालाकार और पवित्र चन्द्रमा शुभ समझा जाता है । चन्द्रमा का रंग - किनारा कुछ उत्तर की ओर उठा हुआ रहे तो दस्युओं का घात होता है । उत्तर शृंग वाला चन्द्रमा अश्मक, कलिंग, मालव, दक्षिण द्वीप आदि के लिए अशुभ तथा दक्षिण श्रृं गोन्नति वाला चन्द्र यवन देश, हिमाचल, पांचाल आदि देशों के लिए अशुभ होता है । चन्द्रमा की विभिन्न आकृति का फलादेश भी इस अध्याय में बतलाया गया है । चन्द्रमा की गति, मार्ग, आकृति, वर्ण, मण्डल, वीथि, चार, नक्षत्र आदि के अनुसार चन्द्रमा का विशेष फलादेश भी इस अध्याय में वर्णित है ।
भद्रबाहुसंहिता
चौबीसवें अध्याय में 43 श्लोक हैं । इसमें ग्रहयुद्ध का वर्णन है । ग्रहयुद्ध के चार भेद हैं—भेद, उल्लेख, अंशुमर्दन और अपसव्य । ग्रहभेद में वर्षा का नाश, सुहृद और कुलीनों में भेद होता है । उल्लेख युद्ध में शस्त्रभय, मन्त्रि विरोध और दुर्भिक्ष होता है । अंशुमर्दन युद्ध में राष्ट्रों में संघर्ष, अन्नाभाव एवं अनेक प्रकार के कष्ट होते हैं । अपसव्य युद्ध में पूर्वीय राष्ट्रों में आन्तरिक संघर्ष होता है तथा राष्ट्रों में वैमनस्य भी बढ़ता है । इस अध्याय में ग्रहों के नक्षत्रों का कथन तथा ग्रहों के वर्णों के अनुसार उनके फलादेशों का निरूपण किया गया है । ग्रहों का आपस में टकराना धन-जन के लिए अशुभ सूचक होता है ।
पच्चीसवें अध्याय में 50 श्लोक हैं। इसमें ग्रह, नक्षत्रों के दर्शन द्वारा शुभा - शुभ फल का कथन किया गया है । इस अध्याय में ग्रहों के पदार्थों का निरूपण किया गया है । ग्रहों के वर्ण और आकृति के अनुसार पदार्थों के तेज, मन्द और समत्व का परिज्ञान किया गया है । यह अध्याय व्यापारियों के लिए अधिक उपयोगी है ।
छब्बीसवें अध्याय में स्वप्न का फलादेश बतलाया गया है । इस अध्याय में 86 श्लोक है। स्वप्न निमित्त का वर्णन विस्तार के साथ किया गया है। धनागम, विवाह, मंगल, कार्यसिद्धि, जय, पराजय, हानि, लाभ आदि विभिन्न फलादेशों