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आत्मा का अस्तित्व
जान से युक्त ये। भव्य जनो को प्रतिरोध करते हुए वे एक बार श्रावस्ती नगरी में पधारे । राष्ट्रभर में विचरते रहना और लोगो को कल्याण का सच्चा मार्ग बताना त्यागी सन्तो का कर्तव्य है ।
केगीकुमार श्रमग की ख्याति उस प्रदेश में खूब फैली हुई थी, दमलिए बहुत से लोग उनका उपदेश सुनने आये । उनमे कार्यवशात् श्रावग्नी आये हुए, श्वेतम्बिका नगरी के राजा का परम विश्वास-पात्र चित्र नामक सारथी भी सम्मिलित था।
१. श्री उत्तराध्ययन का २३-वाँ अध्ययन केशी-गौतमी नाम का है। उममें केगीकुमार और गौतमस्वामी का एक मुन्दर सवाद है। उस अव्ययन के प्रारंभ में बताया है कि
जिणे पासित्ति नामेण, अरहा लोगपूश्ये । मवुद्धप्पा य सव्वन्नृ धम्मतित्थयरे जिणे ॥१॥ तस्म लोगपईवम्स, आसि सीमे महायमे । केमी कुमार समणे, विज्जाचरण पारगे ॥२॥
ओहिनाणमुए बुद्धे, सीसमघसमाउले ।
गामाणुगाम रीयते, मेऽवि सावत्थिमागए ॥३॥ श्री पार्श्वनाथ नाम के जिन हुए। वे अर्हत. लोकपूज्य, सबुद्धात्मा, सर्वश, धर्मतीर्थ के संस्थापक अोर सर्व भयों को जीतनेवाले थे।१।
इन लोकप्रदोप के केशीकुमार नामक श्रवण शिष्य थे। वे महायशम्वी और विद्याचरित्र में पारगत ये।।
अवधिज्ञान और श्रुतगान से युक्त वे महापुरुप शिष्यमडल से परिवृत्त होकर ग्रामानुग्राम विचरते हुए एक बार श्रावस्ती नगरी में पधारे ।३।
उत्तर प्रदेश के अयोध्या जिले में बलरामपुर स्टेशन से बारह मील की दूरी पर स्थित सहेट-महेट प्राचीन श्रावस्ती है। श्रावस्ती पच्चीस आर्यदेशों में स्थान-प्राप्त कुणालक देश की राजधानी थी।