Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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समय : प्रथम अध्ययन-प्रथम उद्देशक
ज्ञाता हूँ, भोक्ता हूँ' आदि मानने लगता है। प्रकृति और पुरुष का संयोग अंधे और लंगडे के समान है । अंधी प्रकृति के कंधे पर चढ़ा हुआ,लंगड़ा पुरुष अज्ञानवश प्रकृतिसंसर्ग को सुखरूप मानकर संसार-परिभ्रमण करता रहता है। पुरुष का मोक्ष तभी होगा, जब प्रकृति और पुरुष में भेद-ज्ञान होने से प्रकृति का वियोग होगा। सुखदुख-मोहरूपा प्रकृति से अपने स्वरूप को आत्मा भिन्न नहीं समझता, तब तक मोक्ष नहीं हो सकता। प्रकृति को आत्मा से भिन्न समझने पर ही प्रकृति का व्यापार रुक जाता है और आत्मा अपने स्वरूप में अवस्थित हो जाता है, यही मोक्ष है । अतः सांख्यमतानुसार पुरुष न तो कारणरूप है, न कार्य रूप, अतः उसको न बन्ध होता है, न मोक्ष और ज संसार ही। ये सब बन्ध आदि तो प्रकृति को होते हैं।' किन्तु प्रकृति में होने वाले ये बन्ध आदि विवेक (भेदज्ञान) न होने के होने के कारण उपचार से भोक्ता पुरुष के कहे जाते हैं ।
__इस प्रकार विचित्र सांख्यमत, जो आत्मा को बिलकुल निष्क्रिय और अकर्ता मानते हुए भी भोक्ता मानता है, साथ ही भोक्ता आत्मा को न तो वह बन्ध मानता है, न मुक्ति और न संसरण (जन्म-मरण रूप संसार परिभ्रमण ही)। भला यह तो सरासर मिथ्यात्व है कि 'करे कोई, भोगे कोई', 'करे प्रकृति, भोगे आत्मा' । और विषयोपभोग में प्रवृत्त होने पर भी आत्मा के कोई बन्धन नहीं, न उसे मुक्ति की कोई परवाह है । सांख्यमत के अनुयायियों की चर्चा का परिचय माठरवृत्ति में बताया गया है--
हस पिव लल खाद मोद नित्यं, भुक्ष्व च भोगान् यथाभिकामम् । यदि विदितं ते कपिलमत, तत्प्राप्यसि मोक्ष-सौख्यमचिरेण ॥
खब हँसो, मजे से पीओ, प्यार करो, शरीर को खब लाड़ करो, खब खाओ, मौज करो, प्रति दिन इच्छानुसार भोगों को भोगो, इस तरह जो तबियत में आवे, बेखटके करो। इतना सब करके भी यदि कपिल (सांख्य) मत को समझ लोगे तो शीघ्र मोक्ष सुख को प्राप्त कर लोगे ।
__ अब आइए वैशेषिक मत की ओर। वैशेषिकदर्शन में ६ पदार्थ माने
१. पुरुषस्य दर्शनार्थं कैवल्यार्थं तथा प्रधानस्य । पंग्वन्धवदुभयोरपि संयोगस्तत्कृतः सर्गः ।।
-सां० का० २१ २. तस्मान्न बध्यते नवं मुच्यतेनाऽपि संसरति ।
कश्चित् संसरति बध्यते मुच्यते च नानाश्रयाप्रकृतिः । -सां० का० ६२ ३. धर्मविशेषप्रसूताद् द्रव्यगुणकर्म-सामान्य-विशेष समवायानां पदार्थानां साधर्म्यवैधाभ्यां तत्वज्ञानानिःश्रेयसाधिगमः ।
-~-वैशेषिक सूत्र १।४।२
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