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वक्तृत्वकला के बीज
भारतीय आस्तिकदर्शन मुख्यलया छः हैं - (१) बोड, (२) नैवावि, (३) सांख्य, (४) जैन, (५) वैशेषिक, (६) जैमनीय (नास्तिक दर्शन इनमें नहीं गिना गया है)
दर्शनों का उद्भव -
१. बानामृजुसून तो मतमभूद् वेदान्तिनां संग्रहात्, सांख्यानां तत एव नैगमनयाद् योगश्च वैशेषिकः । शब्दं ब्रह्नाविदोऽपि दृष्टिरिती
जैनी
शब्दनमतः सारतरना
ऋजुसूजन की अपेक्षा से बौद्ध संग्रहनय से वेदान्त सांख्य, नैगमनय से नैयाविक वैशेषिक और शब्दन की अपेक्षा से
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सर्वर्नयेगुम्फिता, अत्यक्षमुद्वीक्ष्यते ।
ब्रह्मविदों का शब्द दर्शन उत्पन हुआ, किन्तु जैन दर्शन सभी नयों से गुम्फित है अतः इसकी श्रेष्ठता प्रत्यक्ष देखी जा रही है । दर्शनों के प्रमाण
१. चार्वाकोऽध्यक्षमेकं सुगतकणभुजी सानुमानं सशाब्दं, तद्वं तं पारमर्षः सहितमुपमया तत्त्रयं चाक्षपादः । अर्थापत्त्या प्रभाकुद् वदति तदखिलं मन्यते भट्ट एतत्, साभावं द्वे प्रमाणे जिनपतिसमये स्पष्टतोऽस्पष्टतश्च ।। चार्वाक एक प्रत्यक्ष प्रमाण को मानते हैं । बौद्ध और सांख्य तीन प्रमाणों को स्वीकार करते हैं— प्रत्यक्ष, अनुमान और शब्द ( आगम ) । पारमर्षः-- वैशेषिक दो प्रमाणों को ग्रहण करते हैं- प्रत्यक्ष और अनुमान । नैयायिकों ने पांच प्रमाण मान्य किये हैं- प्रत्यक्ष अनुमान, शब्द, उपमा ओर अपत्ति । भट्टानुयायि - जैमनीयों के पांच तो पूर्ववत् एवं एक अभाव प्रमाण – ऐसे छः प्रमाण है तथा जनों के दो प्रमाण हैं--- प्रत्यक्ष और परोक्ष |