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धक्तृत्वकला के बीज
१४. एक गरीब रसोईदारिन बेटे के लिए कागज के पुड़िया में
थोड़ा सा हलवा ले चली। हाथ से पुड़िया छुट जाने से हलवा नीचे गिर गया। उसे देखकर एक बहन ने कहायह चोर है. दूसरी ने कहा-गरीबी का दोष है, तीसरी ने
कहा-बेटे का ममत्व है। १५. प्रत्येक व्यकि अपनी दृष्टि के अनुसार ही अपने सिमान्त
की मृष्टि करता है । जैसे-वे निर्माता ने स्त्री और मुद्र को घृणिय दृष्टि से देखकर कह दियास्त्री-शूती नाधीयताम् अर्थात स्त्री और शूद्र को वेद नहीं पढ़ाना चाहिए । इसी प्रकार तुलसीदासजी ने भी कह डालाहाल गवार शूट नारी, थे सब ताड़न के अधिकारी। क्रोधी कहता है-- सांच कहूं होवार निडर, कोई हो नाराज , मैंने तो सीखा यही, साँच बोलिए गाज । कटुभाषी ने कहा-- - बुरे लगे हित के बचन, हिये विचारो आप, कडुवी औषधि बिन पिये, मिटे न तन का ताए । व्यापारी बोलासत्यान्तं तु वाणिज्यम् ! अर्थात साँच-झूठ का नाम ही
ध्यापार है, यह केवल सत्य से नहीं चल सकता । १६. शहर के बाहर मेला लग रहा था । वृक्ष पर चिड़िया त्री
ची कर रही थीं। वृक्ष के नीचे विभिन्न विचार के कई