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मैं मुनिश्री जी, और उनकी इस महत्वपूर्ण कृति का हृदय से अभिनन्दन करता हूं । विभिन्न भागों में प्रकाशित होनेवाली इस विराट् कृति से प्रबचनकार. लेखक एवं स्वाध्यायप्रेमीजन मुनि श्री के लिए ऋणी रहेंगे। वे जब भी चाहेंगे, वक्तृत्वकला के बीज में से उन्हें कुछ मिलेगा ही, बे रिक्तहस्त नहीं रहेंगे ऐसा मेरा विश्वास है ।
प्रवक्त- समाज - मुनिश्रीजी का एतदर्थं आभारी है और आभारी रहेगा ।
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जैन भवन
आश्विन गुप्ता-३ आगरा
-- उपधाम नमरमुनि