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वक्तृत्वकला के बीज
११. क्षारभावमपहाय वारिधेः, गृलन्ते सलिलमेव बारिदाः ।
__ --उपदेशप्रसाद मेघ समुद्र के खारेपन को छोड़कर केवल जल को ही ग्रहण करते हैं। १२. म्लेच्छानामागि सुवृत्त ग्राह्यम् ।
--कोटिलीय अर्थशास्त्र म्लेच्छों के भी सदाचरण ले लेने चाहिए । १३. शोरपि मुगा ग्राह्या।
---कौटिलीय अर्थशास्त्र सत्रु से भी गुण ले लेना चाहिए । १४. विपादप्यमृतं ग्राह्य-ममेध्यादपि काञ्चनम् । मीचादयुत्तमा विद्या, स्त्रीरत्नं दुष्कुनादपि ॥
--चाणषयनीति २०१६ मिल सकता हो तो विष से अमृत, गन्दगी से सोना, नीच' में उत्तम
विद्या और दुप्कुल से भी स्त्रीरत्न ले लेना चाहिए। १५. स्त्रियो रत्नान्यथोविद्या, धर्मः शोचं सुभाषितम् । विविधानि च शिल्पानि, समादेयानि सर्वतः ।।
-मनुस्मृति ६२४० गुण यती स्त्रियां, रन, विद्या, धर्म, पवित्रता, सुभाषित और नाना प्रकार की कलायें-- ..ये चीजें हर एक से ले लेनी चाहिए। युक्तियुक्त उपादेयं, वचनं बालकादपि । अन्यत् तृणमिव त्याज्य-मप्युक्तं पद्मजन्मना ।।
--योगवाशिष्ठ २।१८५६ युक्तियुक्त वचन को बालक से भी ले लेना चाहिए और युक्तिहीन
वचन चाहे ब्रह्मा का भी क्यों न हो, वह सृणवत् त्याज्य है । १७. ननु वक्तृविशेषनिःस्पृहा, गुणगृह्या वचने विपश्चितः ।
---किरातामुनीय र