Book Title: Vaktritva Kala ke Bij
Author(s): Dhanmuni
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 819
________________ २८० वक्तृत्वकला के बीज एक बहरा अपने बीमार मित्र से मिलने गया किन्तु वह मर चुका था । बहरे ने उपस्थित लोगों से पूछा कि भाईजी किस तरह हैं ? लोगों ने कहा-वे तो मर चुके । बहरे ने सोचा, कुछ टीवर बतला रहे हैं, अत: तपाक से कह दिया, बहुत खुशी की अगवान दें. अगछा किया। लोग हंसने लगे, लेकिन बग़ नहीं समझा और पूछने लगा-किसका इलाज चल रहा है ? उपस्थित मजाकिये ने कहा-यमराजजी का। वहरा अमुक डाक्टर का नाम समझकर बोल पड़ा-वे डाक्टर बहुत अच्छे हैं, इनके हाथ में समा भी है। तवीयत नरम-गरम हो तो आन भी इन्हीं की दवा लिया करें । (हंसी बढ़ती जा रही थीं) सहजभाव से बहरे ने पुन: प्रश्न किया-भाईजी को पथ्य क्या दिया जाता है ? उत्तर मिला-कांकर-पत्थर 1 इसने दलिया-खिचड़ी आदि समझकर कहा–पथ्य बिल्कुल ठीक है। जाप लोग भी मौके-मौके इसी का प्रयोग किया करें। अस्तु 1 भाईजी सोते कहाँ है ? उत्तर दिया गया-- श्मशान में 1 बहरे ने कमरा आदि समझकर वह डाला--स्थान सुरक्षित है । बाल-बच्चों को भी नहीं सुला दिया करें । उपस्थित लोगों के हंसी के मारे पेट दुखने लगे । आखिर ज्यों-त्यों रामझाकर बहरे को घर भेजा।

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