Book Title: Vaktritva Kala ke Bij
Author(s): Dhanmuni
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 821
________________ वन्धकला के बीज जबान को इसमा तेज मत चलने दो कि यह मन से आगे निकल जाय । ६. पानी हटे, ची : --गुमाली कहावत १५. यह जवा नहीं, लोहे को शमसीर है, जो कह दिया, पत्थर की लकीर है। छुरी कातुरी का, तलबार का घाव लगा सो भरा। लमा है जखम जत्रां का, वो रहता है हमेशा हरा ।। -उर्दू शेर ११. तीन इंच लम्बी जबान छ: फिट ऊंचे आदमी को मार सकती है । -जापानी कहावत १२. लम्बी जबान छोटो जिन्दगी । -अरको कहावत १३. जीभ ने बरजजे, नीकर दांत पड़ावो 1 जीभ करे छे आल पंपाल, ने खाँसड़ा खाय सिर-कपाल । जीभ सौ मग घी खाय पण चीकणी न थाय । चमक हजारों वर्ष पाशी मो रहे पण बाग जायज नहीं। -गुजराती कहावरों १४. रसना में तीन रनियां-अन्य इन्द्रियों के गोलकों में एक-एक इन्द्रिय ही होती है, पर जिला में तीन इन्द्रिया (इन्द्रियों की शक्तियाँ) हैं। इसलिए, अन्य सब इन्द्रियों की अगेक्षा-जिद्रिव अतिप्रबल है । ग्रह रसनेन्द्रिय है, स्पर्श नेन्द्रिय है और वागीन्द्रिय भी है। विन्द्रिय से रसास्वादन कर सकते हैं, शीत-तण-मा-कठिन पर्म को जान सकते हैं और बोल भी सकते हैं । आः एक रसनेन्द्रिय को जीतने से अन्य मब विषय और इन्द्रियों जीती जाती हैं । श्रीमद्भागवत १११।२१ में कहा भी है--

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