Book Title: Vaktritva Kala ke Bij
Author(s): Dhanmuni
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 820
________________ जिला १. जिह्वायत्ती वृद्धि विनाशौ । ---चाणक्यसूत्र ४४० मनुष्य को उन्नति-अवनति जिला के अधीन है। २. जीभ के वश में जीवन भी है और मृत्यु भी । -पुरानी बाइयिल, नगिश्ते, नीतिवचन का२१ ३. जबान सीरी, मुल्क गिरी । जबान टेढ़ी, मुल्क बांका। -हिन्दी कहावत ४. इस अनुभाग, केरल हसिक। कडवो लागे काग, रसना रा गुण 'राजिया ! -सोरठासंग्रह ५. यदि रसना रसहीन है, दया सकल घकवाद । दांत नहीं फिर मुंह मैं, क्या खाने का स्वाद ।। --कोहा-संदोह ६, कागा किसका धन हरे, कोयल किसको देत । एक जीभ के कारण, जग अपनो कर लेत ।। ७ रे जिह्व ! कुरु मर्यादां, बचने भोजने तथा । बवने प्रारण संदेहो, भोजने स्यादजीणंता ॥ है जीभ ! बोलने एवं खाने की मर्यादा कर । अपर्यादित बोलने में। प्राणों में संदेह होने लगता है और अमर्यादित खाने से अजीर्ण हो जाता है। २८५

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